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________________ ३४० प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी विपय पर वार्तालाप करके मामले को अक्छी तरह समझा तो जैन पत्री की सराहना की। फिर उन्होंने यह भी कहा ___"इस सम्बन्ध मे पूज्य श्री का विरोध करने का किसो को अधिकार नहीं है। हां, उसको मानने या न मानने की सव को स्वतन्त्रता है। इस सम्बन्ध मे मुनि मिश्रीलाल जी महाराज या किसी अन्य व्यक्ति का सत्याग्रह करना सर्वथा अनुचित है और वह सत्याग्रह न होकर दुराग्रह है।" इस प्रकार पजाब मे जैन तिथि पत्र का प्रश्न कई वर्ष तक अत्यन्त गंभीर मतभेद का कारण बना रहा । इसमें विशेष बात यह भी थी कि दोनों पक्ष के आन्दोलक इस विषय की गहराई में जाकर उसको समझने का प्रयत्न न करते हुए कषाय के वशवर्ती होकर केवल आन्दोलन कर रहे थे, जो कि एक उन्नतिशील तथा जागृत समाज के अनुरूप नहीं था। जब यह आन्दोलन मुनियों से होकर गृहस्थों में भी आ गया तो इस मतभेद को दूर करने के सम्बन्ध में पजाब जैन सभा की ओर से कई बार प्रयत्न किया गया। संवत् १९८१ विक्रमी मे तारीख १६ जनवरी १९२४ को लाहौर में मुनि श्री लालचन्द जी महाराज की उपस्थिति में उनकी सम्मति तथा स्वीकृति से कुछ प्रतिष्ठित साधु मुनिराजों तथा १५ श्रावकों की एक कमैटी नियत की गई । लाला फत्तूराम व लाला खजांची राम को इस उपसमिति का मन्त्री बनाया गया। इस कमेटी के आदेशानुसार मत्रियों ने परिश्रम करके साधु मुनिराजों को जालन्धर नगर मे एकत्रित करके उनका एक सम्मेलन किया। यह सम्मेलन लगभग एक सप्ताह तक चला। इस सम्मेलन में गणावच्छेदक मुनि श्री लालचन्द जी महाराज,
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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