SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी "जब उस लड़की का वाग्दान नाहड़ हो चुका है तो मैं उससे कैसे विवाह कर सकता हूं? मैंने उनसे कह दिया है कि में आपकी लड़की से विवाह नही कर सकता। आप उसका विवाह नाहड़ करें।" आपके चचा को आपके यह शब्द सुनकर क्रोध हो पाया। वह चिल्ला कर आपसे बोले । "तो बड़े बूढों के बीच में बोलने बाला तू कौन होता है ?" उन्होंने इस प्रकार आपको बहुत डांट फटकार बतलाई । किन्तु आप सब कुछ चुपचाप सुनते रहे। आपने अपने विचार पर दृढ़ रहने का सकल्प और भी पक्का कर लिया।" अब आप पर गांव में सब ओर से डाट फटकार पड़ने लगी। अस्तु आप दड़ौली से अवोहर मंडी चले आए और वहीं रहने लगे। ___ कुछ दिनों बाद ही फाल्गुण मे आपका विवाह करने का नियमानुसार हुड़ियाने से पत्र आ गया। दड़ौली के आपके घर वालों ने आपके पास अबोहर मंडी समाचार भेजा कि वह आपको अविलम्ब दड़ौली भेज दें, किन्तु इस बार आपने अपने मन मे कुछ अधिक साहस बटोर कर विवाह के लिए दड़ौली जाने से साफ इंकार कर दिया। किन्तु चाचा ने आपको खूब डांट फटकार बतलाई और दडोली जाने के लिये जबर्दस्ती रेलगाड़ी मे विठला दिया। ___ अबोहर मे आपके पास दो मकान थे। एक मंडी में किराये का था, जिसमे वह स्वयं रहते थे। दूसरा वस्ती से कुछ अलग था। इस मकान में सरगोधा निवासी एक धनिक गौड़ ब्राह्मण
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy