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________________ मुनि-शुक्लचन्द्र जी की दीक्षा ३०७ ___"किन्तु मेरा विचार तो विवाह करने का नहीं है। मुझ से तो सगाई के समय पूछा तक नहीं गया। जब आपने अपनी लड़की की मंगनी नाहड़ में की थी तो आपको उसका विवाह भी वहीं करना चाहिये। श्रापके यह वचन उसको बहुत बुरे लगे, और वह आपसे कहने लगा। • "इस बारे में मुझे आप से कोई भी बात नहीं करनी है। जब सब कुछ आप के चाचा से तय हो गया है तो इसमें सब कुछ वही करेंगे।" यह कह कर वह लौट गया। उसने घर जाते ही एक पत्र दड़ौली को लिखकर उसमें शुक्लचन्द्रजी के गांव मे आने तथा उनके साथ हुए वार्तालाप का सब समाचार लिख दिया। फिर उसने उस पत्र को एक आदमी के हाथ दड़ौली भेज दिया। उधर शुक्लचन्द्र जी भी दडौली अपने घर आ गए। आपके आने के कुछ समय बाद हुड़ियाना से पत्र लेकर वह आदमी भी आ गया । आपके चाचा ने जब वह पत्र पढ़ा तो उनको बड़ा बुरा लगा। उन्होंने क्रोध में भर कर आप से पूछा। "क्यों शुक्लचन्द्र ! तुम हुड़ियाना क्यों गये थे ?" तब आपने बात बनाते हुए उनको उत्तर दिया "मेरा विचार न तो वहां जाने का ही था और न मैं वहां जान बूझ कर गया । मुझे वहां ऊँट वाला ले गया।" तब आपके चाचा ने फिर पूछा। "तो तुम वहां विवाह करने को इंकार कर आए ?" इस पर आपने थोड़ा साहस करके उत्तर दिया
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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