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________________ पदवी दान महोत्सव ३०६ ___ मूर्छा शब्द की व्याख्या दिगम्बर आचार्य पूज्यपाद ने तत्वार्थ सूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में इस प्रकार की है ____ "बाह्यानां गोमहिषमणिमुक्तादीनां चेतनाचेतनानां रागादीनामुपधीनां च संरक्षणार्जनसंस्कारादिलक्षणा व्यावृत्तिमा ।" ___ गो, भैंस, मणि, मुक्ता आदि चेतन तथा अचेतन राग भादि उपधियों के संरक्षण, अर्जन तथा संस्कार प्रादि लक्षण रूप ममत्त्व को मूर्छा कहते हैं। अमृतचन्द सूरि ने भी अपने ग्रन्थ “पुरुषार्थसिद्ध्युपाय" में यही कहा है या मूर्छानामेयं, विज्ञातव्यः परिग्रहो ह्यषः । मोहोत्यादुदीर्णो, मूर्छा तु ममत्वपरिणामः || पुरुषार्थसिद्ध्युणाय १११ मूर्छा को ही परिग्रह जानना चाहिये । मोह के उदय से उत्पन्न होने वाला ममत्व परिणाम ही मूर्छा है। इस प्रकार वस्त्र परिग्रह नहीं, वरन् उनका ममत्व परिग्रह है। दिगम्बर शास्त्रों के अनुसार वास्तव मे परिग्रह तीन प्रकार का होता है___एक क्षेत्र, वास्तु, सुवर्ण आदि दश प्रकार का बाह्य परिग्रह ; दूसरा रति, अरति, काम, क्रोध आदि चौदह प्रकार का आभ्यन्तर परिग्रह तथा तीसरा शरीर परिग्रह । इस प्रकार यदि शरीर मे ममत्व है तो वस्त्र न रखने पर भी मुनि को परिग्रही कहा जावेगा और यदि वस्त्रों मे उसका ममत्व नहीं है तो उसे वस्त्र धारण करने पर भी निम्रन्थ कहा.
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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