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________________ ३०८ प्रधानाचार्य श्री मोहनलाल जी में अपने कर्तव्य का पालन करते हुए मुनि काशीराम जी महाराज ने पजाब का भ्रमण करते हुए फाल्गुण १६६५ में पमम्र नगर में शाह कोट निवासी श्री हरखचन्द जी वैरागी को दीक्षा दी। पाप खण्डेलवाल जैन थे और पहिले जालन्धर में रहा करते थे। मुनि श्री काशीराम जी महाराज ने सवत १९६७ में भटिंडा निवासी श्री कल्याण मल जी रागा को दाना की। 'पाय अग्रवाल जैन थे। कल्याण मल जा याग चल कर बड़ भारी तपस्वी प्रमाणित हाए। उन्होंन कंवल जल के आधार पर एक एक मास की तपस्या कई बार की। __ पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज ने संवत् १६६८ में बैरागी ताराचन्द तथा वैरागी गंगाराम जी को दीक्षा दी। दिगम्बर मत के प्रमाण अमृतसर में पूज्य श्री के पास पानीपत से माधव मुनि का एक पत्र आया कि यहां के दिगम्बरी भाई नग्नता के विरुद्ध तथा स्त्री मुक्ति के विपय मे अपने शास्त्रों के प्रमाण चाहते है। इस पर पूज्य महाराज ने उनको निम्न लिखित प्रमाण लिखवा कर भिजवाए साधुओं के लिये नग्न रहना आवश्यक नहीं दिगम्बर शास्त्रों मे वस्त्रों को परिग्रह न मान कर मूछो अथवा ममत्व को परिग्रह माना गया है। जैसा कि उमा स्वामी ने कहा है मूर्छा परिग्रहः। तत्वार्थ सूत्र, अध्याय ७, सूत्र १७
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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