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________________ २७८ - प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी ___मुनि सोहनलाल-उनमें क्यों आपको तो निर्दयी व्यक्तियों में गिना जाना चाहिये। क्योंकि न तो आप लोग जिन कल्पी हैं और न प्रत्येक बुद्ध हैं। मुनि सोहनलाल जी के यह शब्द कहते ही उपस्थिति जनता एक दम ताली पीट कर हंस पड़ी। इस पर सरदार शहर के सेठिया तथा पंथी श्रावक ऊधम करने लगे, किन्तु लाला घमन्डीलाल ने साहस से काम लेकर शान्ति स्थापित कर दी। तब मुनि माणिकचन्द वहां से लज्जित हो कर उठ गये और मुनि सोहनलाल वहां से विजय प्राप्त कर अपने स्थान पर आए। _ मुनि श्री सोहनलाल जी ने हांसी के चातुर्मास के बाद वहां से विहार करके बिहाणी, रोहतक, कान्ही, जिंद, कसूण, बड़ौदा, भिठमडा, टुहाणा, मोणक, सनाम, सगरूर, धूरी तथा मालेरकोटला में धर्म प्रचार करते हुए लुधियाने जा कर पूज्य श्री मोतीराम जी महाराज की सेवा में संवत् १९५१ के अन्त में उपस्थित हुए। उन्हीं दिनों आपने कलानौर जिला गुरदास पुर निवासी श्री जमीतराय बैरागी को दीक्षा देकर उन्हें मुनि श्री . गैंडेराय जी का शिष्य बनाया। यह पीछे लिखा जा चुका है कि पूज्य श्री मोतीराम जी महाराज बहुत समय से अपने कार्य को हल्का करने के सम्बन्ध में विचार कर रहे थे। उनकी दृष्टि में सारे संघ में मुनि सोहनलाल जी विद्वता, भाषण शैली, तपश्चर्या तथा संगठन शक्ति आदि गुणों में संघ की रक्षा करने योग्य थे । श्रतएव आपने यह निश्चय कर लिया था कि अबकी बार भेंट होने पर मुनि सोहनलाल जी को युवाचार्य पद दे दिया जावे।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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