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तप तथा अध्ययन
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तथा आचार्यों को अपने पास तीन तक चादर एक साथ रखने का अधिकार है। श्री सोहनलाल जी ने आसन भी अपने पास एक से अधिक नहीं रखा।
आप किसी अत्तार या पंसारी की दूकान की औषधि भी नहीं लिया करते थे। जुकाम होने पर भी आप घिस कर सिर मे लोंग ही लगाया करते थे।