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________________ २२० प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी लोग अनेक प्रकार के करुणामय शब्दों में विलाप करते थे, तब श्री सोहनलाल जी महाराज ने श्री संघ को संसार की अनित्यता दिखला कर प्रबोध दिया। इसके पश्चात् श्रावकों ने एक सुन्दर विमान में श्री पूज्य अमरसिंह जी महाराज के शरीर को प्रारूढ़ करके उनका जुलूस निकाला। इस विमान के ऊपर चौदह वहुमूल्य दुशाले पड़े हुए थे। जुलूस के आगे आगे वाजा बज रहा था। इस प्रकार श्मशान भूमि में जाकर चन्दन की लकड़ी की चिता पर रख कर उनके शरीर का अग्निसंस्कार किया गया। यह उत्सव इतना अधिक शानदार था कि लोगों को उसको देख कर महाराजा रणजीतसिंह के मृत्युमहोत्सव की याद ताजा हो गई। मुनि सोहनलाल जी महाराज जब से श्री पूज्य अमरसिंह जी महाराज के पास आए थे, उन्होंने अपना समय पढ़ने, लिखने तथा तपश्चरण करने में ही व्यतीत करना प्रारम्भ किया । वास्तव में आपका सारा जीवन ही तपस्यापूर्ण था। ___आपने बारह वर्ष तक एक पात्र से ही काम चलाया। लगातार बाईस वर्ष तक आपने एक दिन छोड़ कर एक २ दिन पर आहार करते हुए एकान्तर तप किया। इसके अतिरिक्त वीच मे कई वार आप चार २, पांच २ तथा छै २ दिन के उपवास किया करते थे। एक बार तो आपने आठ दिन का भी उपवास किया था। किन्तु लगातार आठ दिन से अधिक आपने उपवास कभी नहीं रखा। वस्त्र रखने मे भी आपने अपने उच्चकोटि के तपश्चरण का परिचय दिया। आपने वारह वर्ष तक एक ही चादर से काम चलाया। एक समय दो चादर आपने अपने पास कभी भी नहीं रखीं। वैसे साधुओं को अपने पास दो चादरे रखने का
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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