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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी इसलिये आज यदि हम इस उपसर्ग से वच गए तो सांसारिक गृहस्थ जीवन का परित्याग करके दीक्षा ले लेगे। किन्तु यदि हमारी इस वेई नदी में ही मृत्यु हो गई तो समस्त आगारों सहित हम सब प्रकार के परिग्रह का त्याग करते हैं।"
किन्तु शासन देवता की कृपा तथा समाज के सौभाग्य से उनकी उस उपद्रव से प्राणरक्षा हो गई। जब यह वेई नदी को पार कर उसके तट पर पहुंचे तो वह व्यक्ति इनका सोना जंवर आदि माल लेकर यह समझ कर भाग निकला था कि यह लोग नदी में ही डूब कर मर गए होंगे। यह लोग प्राण रक्षा को विशेष लाभ मानते हुए तथा गए हुए माल का विशेष दुःख न करते हुए अपनी प्रतिज्ञा की ओर ध्यान देकर दीक्षा का निश्चय किये हुए अपने अपने घर वापिस आए।
किन्तु न्यायपूर्वक कमाया हुश्रा धन खो कर भी वापिस मिल जाया करता है। जो व्यक्ति वेई नदी पर इनका माल लेकर भाग गया था, अचानक वह लाला गंडा मल के यहां आ गया । अव तो उस से सारा माल वसूल कर लिया गया। श्री सोहनलाल जी ने उसको विना सजा दिलाए ही छोड़ दिया और उसको इस प्रकार की शिक्षा दी, जिससे उसका जीवन सुधर सके। ___ जब इन पांचों मित्रों के घर वालों को इनकी प्रतिज्ञा का समाचार मिला तो उन्होंने निश्चय किया कि इस वात के जनता में फैलने के पूर्व ही इन लोगों का गुपचुप विवाह कर दिया जावें । अस्तु वह लोग गुप्त रूप से विवाह के लिये
आभूषण आदि तय्यार करवाने लगे। अव तो विवाह की प्रत्येक तय्यारी की जाने लगी। श्री सोहनलाल जी की माता लक्ष्मी देवी को भी इस कार्य के लिये पसरूर बुला लिया गया।