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________________ २०६ दीक्षा ग्रहण साथ शिव दयाल, गणपत राय, दूल्हो राय तथा गोविन्द राय यह चार साथी और भी थे। वहां से वापिस आते हुए किला शोभा सिंह के आगे वेई नाम की एक नदी पसरूर के मार्ग में पड़ती है। श्री सोहनलाल जी ने अपने चारों अन्य साथियों सहित उसको पार करने के लिये उसमें प्रवेश किया। इन लोगों के वेई नदी की मध्य धार में पहुंचने पर उसके जल का प्रवाह अधिक बढ़ गया। इन लोगों के पास सोने चांदी का बोझ भी कम नहीं था। अतएव उस समय उनको अपने डूबने का भय सामने दिखलाई देने लगा। दैवयोग से उधर से एक और व्यक्ति भी आ गया। उसे भी नदी पार करनी थी। उसने इन पांचों से कहा "तुम मुझको अपना यह सामान दे दो। मैं तैर कर निकल जाऊंगा। उस पार पहुंचने पर तुम अपना सामान मुझ से ले लेना।" वह व्यक्ति अपने को अधिक तैराक तथा इनको कम तैरने वाला समझता था। इन्होंने उसकी बात मान कर अपना बोझ उसको दे दिया। इधर जल का वेग और भी बढ़ गया और वह व्यक्ति जल का वेग अत्यधिक बढ़ने से पूर्व ही नदी के उस पार जा पहुंचा। __ अब नदी में इतना अधिक जल आ गया कि इनको अपनी मृत्यु की पूर्ण सभावना हो गई। तब इन पांचों मित्रों ने आपस में परामर्श करके यह प्रतिज्ञा की ___"आज हमको आर्य देश तथा उच्च कुल के सभी उत्तम संयोग मिले हुए हैं, किन्तु इस समय हमारी आयु पूर्ण होने की संभावना है। हमको इस बात का खेद है कि हमने मनुष्य जन्म पाकर भी जो कुछ हमको करना चाहिये था वह नहीं किया।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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