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________________ दीनों का कष्ट निवारण २०१ वह तेजी से तैरते हुए उस बालक की ओर चले। उन्होंने अपने साथ एक रस्सा लिया हुआ था, जिसको वह कमर में बांध कर उसी की सहायता से लड़के को लाने का विचार कर रहे थे। वह लड़का डूबने ही वाला था कि सोहनलाल जी ने जाते ही उसको पकड़ कर ऊपर को उठाया और उसकी कमर में रस्से को मजबूती से बांध कर उस लड़के को लिए हुए बड़ी कठिनता से तैरते हुए किनारे पर आगए। उनके जल से बाहिर निकलते ही लोगों ने तालियां बजा कर उनका स्वागत किया और उनकी वीरता की प्रशंसा की। सोहनलाल जी ने प्रथम उस लड़के के पेट का पानी निकाला। फिर उन्होंने उसको औषधि दी, जिससे वह कुछ होश में आया। तब तक उस लड़के के माता पिता भी सतलज पर आ गए थे। वह सोहनलाल जी का अत्यधिक उपकार मानते हुए अपने लड़के को अपने घर ले गए। । ___ एक बार सम्बत् १९२५ में सोहनलाल जी सर्राफे का माल मोल लेने दिल्ली गए। समय वर्षां ऋतु का था। यमुना नदी अपने पूरे वेग से चढ़ी हुई मर्यादा का उल्लंघन कर रही थी। रात दिन आनन्द विलास में डूबी रहने वाली दिल्ली की जनता इस दृश्य को देखने के लिये नदी के किनारे बड़ी भारी संख्या में जा रही थी। इसी समय एक अल्हड़ अबोध बलिका भी यमुना की असीम जल राशि को देख कर आनन्द से मुग्ध हो कर अपने दोनों हाथों से तालियां पीटती हुई नाच रही थी। उसकी ओर किसी का भी ध्यान नहीं था। यमुना के जल मे फूलों का एक गुलदस्ता बहता हुआ आ रहा था। बालिका उसको पकड़ने के लिए पानी की ओर झुकी कि उसका पैर फिसल गया और वह यमुना के जल में गिर पड़ी। अब तो
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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