SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जो ___ "बेटा ! तुम्हारे हाथ पैर मे तो बड़ी भारी जलन हो रही होगी ?" इस पर आपने उत्तर दिया "मामी जी! मेरा यह कष्ट श्री गज सुकुमाल मुनि के उस कष्ट के मुकाबले तो कुछ भी नहीं है, जो उनको अपने सिर पर रक्खे हए आग के प्रज्वलित अंगारों से हुआ था। यद्यपि उससे उनके मस्तक का सम्पूर्ण मांस जल गया था, किन्तु वह अपने ध्यान से विचलित नहीं हुए थे। ऐसी स्थिति में एक बालिका की प्राण रक्षा करते हुए जो मेरे हाथ पैर में यह फफोले पड़ गए, वह कुछ भी नहीं हैं। ___ मामी जी अपने धर्मप्रिय ननदोत के ऐसे अपूर्व विचार सुन कर मन ही मन प्रसन्न होती हुई लक्ष्मी पूजा के कार्य में लग गई। किसी व्यक्ति को आपत्ति में देख कर सोहनलाल जी के हृदय में तत्काल उसकी रक्षा करने का उत्साह हो आता था। एकबार गर्मियों के दिनों मे लोग सतलज नदी में स्नान करने जा रहे थे। नदी में जल अधिक था। लोगों की देखा देखी कुछ बच्चों ने भी शौक में आकर उसमें छलांग लगा दी। उनमे एक बच्चा तैरना नही जानता था। वह अन्य लड़कों की देखा देखी धारा के बीच में चला गया। अब तो उसके हाथ पैर फूल गए और वह डूबने लगा। लड़का चीख २ कर सहायता की याचना करने लगा। किंतु जल के तेज प्रवाह को देख कर उसकी सहायता करने का साहस किसी को भी नहीं हुआ। अन्त में सोहनलाल जी से जो वहां स्नान कर रहे थे—यह दृश्य न देखा गया और उन्होंने अपने प्राणों की परवाह न करके नदी में छलांग लगा ही दी।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy