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(६५) मास्टरसे झगडा करने लग जायगा तो सपूर्ण फितारका ज्ञान होना तो दररहा मगर -ख-ग-इत्यादि बत्तीस अक्षरका ज्ञानभी सारी उमरके लिये दु'शस्य रहेगा । इसलिये वगैर एतकादके ससारीक इल्मभी नहीं प्राप्त होता है तो धामिफ इल्म कैसे हाँसिल होसक्ता है । नेक रडके जैसे मास्टरके वचनाने आत वचनवत मानते हैं। बाद जन पांच सात स्तिावोंका ज्ञान होजाताहै तो यह काविल वयसके होजाते हैं। फिर वे चाहे जितने जवाब सवाल करें मास्टर समझा सक्ताहै, और वे समझ सक्ते है । इसी तरह हमारे जैन भाइयोंको शुरआतसे हि हुनत बाजी करनी न चाहिये । किन्तु पाच पञ्चीश मत्रों को अवणकर अच्छी तरह जैन सूनोंका ज्ञान मिलाना चाहिये वाद किसी बातका सदेह हो तो पूछे । अगर एक गुरु उस वातका
अच्छी तरहसे समाधान न कर सके तो दूसरे गुरुसे दरिया__ पत करें, समाधान न हुआ तो गीतार्थसे दरियाफ्त करों इस तर
हसे कोई गीतार्थ अगर समाधान न कर सके तो दूसरे मतके शास्त्र देसे अपने पड़े हुए या सुने हुए शास्त्रमें जितना तचमान भरा है अगर उननादि तत्वज्ञान उनके उतने मूलशासमिसे निकल आवे और उस मतके पठित लोग तमाम सदेहोंको निवृत्त कर सके तो फिर पेशक अपने मतको छोड देवें । मगर फिरभी अपने गीतार्थ गुरुओंके साथ उनको वयस फरवाय लेना चाहिये। अगर इतनी कोशिश करें तो फिर धर्म भ्रष्टही क्यों होन! भाग