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(६६) कल तो वगैर विचारेही विचारे अपने चिंतामणि रत्नको छोड कर झट बडे खुश होकर काचको ग्रहण कर लेते हैं । जरा पांच सात अंग्रेजी कितावें पड़ी और लेक्चरर हो गयेकि अट आर्यसमाजी व ब्रह्मसमाजी वन बैठनेहैं क्या करें ? उन विचारोंकाभी कोइ दोष नहीं है । कुसंगके वशसे जब उनकी संसारमें रुलनेकीहि भवितव्यता हुइ तो फिर कौन हटा सक्ता है १ हाँ ? अगर पूछनेपर जैन मुनि उनको उत्तर न देव
और अल्पज्ञान होनेकी वजहसे उस्का नास्तिक वगैरा शब्दोंसे तिरस्कार करें मगर यह साफ बात न बतलायें कि हमारे में अमुक अमुक पुरुप गीतार्थ हैं तो मुनिजनोंका दोष कहलायगा। अगर वतलानेपर उस्को धारण न करें और अपनीही कुतकें चलाये जावे, मुनिजनोंके वचनका अच्छी तरहसे मनन न करे वो उस्के भाग्यकाहि दोप समझा जायगा, नकि दूसरेका । प्रिय सज्जनो! यह नहीं समझनाकि मैं अपने मजसनको छोड बैठाहूं। किन्तु यहांपर एतकादके मौकेपर मुताविक जमाना हालके इतना लिखनाही वेहेत्तर था इसलिये लिखागया । अव कहनेका तात्पर्य यहहैकि आपने नैयायिककाभी सारांश अच्छी तरहसे देख लियाहै । इसी तरहसे वैशेषिककाभी समझ लेना। इन दोनों मतमें प्रायः समानता होनेके सबबसे नैयायिकके खंडनसेही वैशेषिकका समझ लेना । क्योंकि इनसोलह पदार्थोंमें वैशेषिककाभी अनुमतहै इनके छ पदार्थाकाभी खंडन विचारते मगर