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(२१२) कुमारने नाचते नाचते मुनिराजको देख कर अहर्त ध्यानाद्ध हुवा था और संसारकी वासना नष्ट होगइ थी जिससे केवल प्रगट हुआ. ____ और आपने सुना होगा कि आरिसेभुवनमें मनकी एकाग्रता करनेसे भरतेश्वर चक्रवर्तिने केवल प्राप्त कियाथा. इस तरह जैनशास्त्रोमें गजसुकमाल, मैतार्य मुनि स्कंधाचार्य आदिके ब. होतसे द्रष्टांत मोजुद हैं, ज्यादा जाननेकी खवाहीगवाले जिज्ञानुओंको मुनिराजोंसे दरियाफ्त करना. __ सभ्य पाठको? ऊपरका हाल सब समझमे आगया होगा. मगर तुम अपने मनको वशमें रखनेका प्रयत्न किये जाना
और जब आपका मन आपसे प्रतिकूल हो तो वीतराग देवक समक्ष जाकर अर्ज किया करना कि जिससे आपकी प्रवृत्ति स्वच्छ हो. ___एकदा श्री आनंदघनजी महाराज मन बशमें न आनेते श्री कुंथुनाथ स्वामीसे वीनती करते हैं सो पाठकोंके समझानार्थ नीचे लिखता हुँ उसे पाठक ध्यान पूर्वक पहें. ॥राग गुर्जरी "अंवर देहो मुरारि"। यह देशी ॥
मनहुँ किम ही न वाजे हो कुंथु जिन, मनई किम ही न वाजे, जिम जिम जतन करीने राखू,