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( २१३ )
तिम तिम अलगु भाजे हो | कुथु जिन ॥ १ ॥ रजनी वासर नसती उजड,
गयण पाया जाय, 1
साप खाये ने मुखड थोधु,
एह उखाणी न्याय हो || कुथु जिन ॥ मुगति तणा अभिलापी तपिया, नान ने यान अभ्यासे ॥
यदि कइ एहनु चिंते,
नाखु अपले पासे हो | कुथु जिन || ३ ||
आगम आगमरने हाथ,
नाये क्णि विप आहे ॥ पिंटाकणे जो हट करी हटर,
(तो) व्या नणी पर कु हो कुयु जिन ॥ ४ ॥ लोग कहु तो टगतो न देख,
माहुकार पण नाहि ||
मी मा ने सहयी अलगु,
ए अचरिज मन माही हो ॥ वृधु जिन ॥ ५ ॥ जे जे क्हु ते कान न धारे,
जाप मने रहे काळ ॥
सुर नर पडित जन ममजावे,
ममन न माह रोमाठु हो । कुबुजिन ॥ ६ ॥