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ध्यान भ्रष्ट होकर मुकृत्य रूपी डोरीसे गिरजायगा तो मरण प्राप्त कर नर्कादिमें उत्पन्न होना पड़ेगा. वास्ते जो तुझे योग्य मालुम हो वैसा करनेमें तत्पर हो.
फिर श्री अनुभववेत्ता योगीराज फरमाते हैं कि हे मन ? जैसे जुआ. ( जुगार ) खेलनेवाले मनुष्यके व विपयानंदी मनुष्योंके ध्यानमें जुगार और विषय हरवख्त व्याप्त रहता है इसी तरह कुंभी ज्ञानरुपी जुगार खेलने में तेरे काठीयाओं को खो दे अर्थात् हार जा. और धमरूपी इश्क में मतृत होकर श्री महावीर परमात्माका स्मरण करनेमें तत्पर होजा.
हे वाचकवृंद ? योगीराज के सुविचारोंकों हृदयतट पर माओ और मनको वश करनेके लिये विन महात्माका अनुकरण करो और शुरुसे मनवश रखनेका प्रयत्न किये जाओ और फिजूल विचारोंको देशनिकाला देदो. एक जगह एक विश्वरने फरमाया है कि,
विन खाधां बिन भोगव्यांजी,
फोre कर्म धाय ॥ आर्त्तध्यान मिटे नहींजी,
कांजे कवण उपाय रे ॥ जिनजी ||
सुज पापीनेरे तार || इत्यादि ॥
भाई ! श्री आदीश्वर भगवान के स्तवन में श्रीमन् महात्मा