________________
(००९) ब्रहमचर्य ? घोर तपश्चर्या ' तीर्थ यात्रा' देशपिरती । चैत्य प्रतिष्ठा ? जीर्णोद्धार ' सुपात्रदान ' ओर चतुविध सघनरी भक्ति रूप सहेलियोंके झुड साथ लेकर मुकृत्य रपी मटका शिरपर लेकर धर्म रूपी वापिकामें धृति ? क्षमा औदार्य : गाभिर्य ? निष्कपटता ' सरल्ला मृदुता ? विवेक ? सर? उपशम रूपी जल भरनेको जा और फिर राग, द्वेष, तज्जन्य, कपाय, मोह, क्रोध, लोभ, मान, माया, मिथ्यात्व, प्रमोट. और जो तेरे शत्रु है वह तेरे सिरपर रहा हुवा जो मुकृत्य स्पी मदना उसे गिरानेका प्रयत्न करेंगे, मगर हे मनदा हुँ व्यान भृष्ट मत होना
पाटम पर्य' दीर्य द्रष्टीसे विचारने तुल्य है कि पेट भरनेको वीच चोकके मध्यमें नटवा हायसे वास पकड कर रस्सी अपर चलनेको समर्थ होता है और नीचे तमाशबीन लाखों मनुप्य शोर मचाते ह, मगर उस नटवेका ध्यान लोगोंके शोर कोरकी तरफ नहीं जाकर स्थिर रहता है, जो ध्यान भ्रष्ट होकर नीचे पडजाय तो नटवा मरण प्राप्त करेइसी तरह हे सुज्ञो" है मन ! तु भी मुकृत्य रूपा वास हायम पकडकर धर्म रूपी रस्सी पर चलनेकी हिम्मत कर और लाखों मनुष्योंके शोर रूपी अनेक प्रकारके विघ्न तुझे प्राप्त हो तोभी तु व्यान भ्रष्ट नहीं होकर प्रभुस्मरणम चित्त लगाकर अहंत ध्यानारूढ होना, और जो मनको वशमे नहीं रखकर