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________________ ७० | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ साथी मुनियो को निभाना अच्छी तरह जानते हैं । सत एव सती मडल को साफ स्पप्ट सलाह देने में भी प्रवीण हैं । गुरु भक्ति मे पक्के निष्ठावान है । प्रथम प्रशिष्य के रूप मे अलकृत किया गया । ५-श्री नरेन्द्र मुनि जी महाराज - मेवाड प्रात मे स्थित 'विलोदा' आप की जन्म स्थली है। श्रीमान् भेरूलाल जी एव सौ० धूलि देवी की कुक्षी से आपका जन्म हुआ । तात-मात की तरह वालक का जीवन भी सुसस्कारो से ओत-प्रोत रहा। फलस्वरूप साधु-जीवन के प्रति प्रगाढ अनुराग स्वाभाविक था। कोई भी सत-सती बिलोदा गाँव मे पहुचते ही, वालक नाथूलाल सेवा मे हाजिर होकर विना कहे आहार पानी की दलाली मे जुट जाता। विलोदा होते हुए हमारा मुनि सघ उदयपुर पधार रहा था। उस समय वाबू नाथूलाल अपने मात-पिता से पूछकर मुनियो के माथ हो गया और रुचि-अनुसार धार्मिक एवं सामाजिक अध्ययन भी शुरू कर दिया। इस प्रकार उदयपुर का वर्षावास पूर्ण होने के पश्चात् श्रीमान भेरुलाल जी ने नीमच के जन स्थानक मे दीक्षा का आना पत्र लिखकर गुरुदेव श्री के कर कमलो मे समर्पित किया। तदनुसार म० २०२० माघवदी १ की शुभ घडी मे मल्हारगढ के मगल प्रागण मे दीक्षा समारोह सपन्न हुआ । आप को गुरुप्रवर के प्रशिप्य के रूप मे घोपित किया गया । अव आप अध्ययन कार्य मे रत हैं। चन्द ही वर्षों मे आपने अच्छी योग्यता प्राप्त की है। व्याख्यान शैलो का प्रवाह भी धीरे-धीरे निखर रहा है। प्रकृति से आप शीतल-शात एव समताशील हैं । मातृभाषा हिन्दी-अध्ययन मे आपकी अभिरुचि अधिक है। गुरु-भक्ति मे आप पूर्ण श्रद्धावान् साधक हैं। गुरुदेव श्री के आप प्रणिप्य के रूप मे घोपित किये गये । ६ - तपस्वी श्री अभय मुनि जी महाराज - आप की जन्मस्थली 'काकरोली' मेवाड है। स्व० श्रीमान चुन्नीलाल जी स्व० श्रीमती नाथीबाई सोनी गोत्रीय ओसवाल परिवार मे आपका जन्म हुआ है। बाल्यकाल सघर्पमय रहा । तथापि जीवन आशा से ओत-प्रोत रहा । साधु जीवन के प्रति प्रगाढ स्नेह था। कई महा मनस्वियो की सेवा कर जीवन को सुसम्कारी बनाया । प्राय उज्जैन मे आप व्यवसाय किया करते थे। महासती श्री छोग कु वरजी, श्री मदनकु वरजी, श्री विजय कु वरजी ठा० ३ स० २०२२ का चौमासा नयापुरा उज्जैन था। तव महासती जी के सदुपदेश से आपकी अन्तरात्मा जागृत हुई और अपने ज्येष्ठ भ्राता श्री मेरलाल जी से पूछ कर सीधे रतलाम चले आये । जहाँ मालव रत्न गुरु श्री कस्तूरचन्द जी म० एव ५० रत्न श्री रमेश मुनि जी म० का वर्पावास था । सेवा मे पहुचकर धार्मिक साधना शुरु करदी। आवश्यक जान होने के पश्चात प्रतापगढ़ की रम्यस्थली मे स० २०२२ माघवदी ३ के मगल प्रभात में आपका दीक्षा समारोह सपन्न हुआ। गुरुदेव श्री प्रताप मलजी म० का शिष्यत्व आपने स्वीकार किया। मुन्य स्पेण आप का परम ध्येय-सत-सेवा एव तपाराधना ही रहा है। विनय-अनुनय एव भक्ति में आप का जीवन ओत-प्रोत है। अभी तक आप ८ ९ १५ १५ २१ तक की लम्बी तपा गधना कर चुके है।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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