SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम खण्ड शिष्य-प्रशिष्य परिचय | ६६ रोचक है । आप द्वारा हिन्दी मे अनुवादित वर्धमान भक्तामर काफी आदरणीय वनी है । अभी आप एव साथी मुनि वीरपुत्र श्री सोह्न मुनि जी महाराज खानदेश एव महाराष्ट्र प्रातो मे धर्म की अपूर्व सेवा कर रहे हैं। ३-श्री रमेश मुनि जी महाराज, सिद्धान्त आचार्य, साहित्य रत्न : मजल (मारवाड) निवासी श्रीमान् सेठ वस्तीमल जी की धर्मपत्नी श्रीमती आशा वाई कोठारी के भरे-पूरे मुसम्पन्न परिवार मे आपका जन्म हुआ । वाल्य एव किशोरावस्था विद्यार्जन व व्यापार मे वीती । सहसा आपको अन्त करण प्रेरणा एव महासती श्री बालकुवँर जी महाराज की वैराग्य भरी शिक्षाओ ने आप को प्रतियोधित किया। तभी आप की अन्तरात्मा अपने परिवार को कहे विना हो दुष्प्राप्य पथ की खोज में निकल पडी । - उस वक्त गुरु भगवन्त श्री प्रतापमल जी महाराज आगम विशारद् प० श्री हीरालाल जी महाराज ठा० ६ का चातुर्मास कलकत्ता में था । येन-केन प्रकारेण आप वहाँ पहुँचे और अपनी वैराग्य भावना प्रगट की । तीक्ष्ण बुद्धि के कारण कुछ ही दिनो मे अच्छा ज्ञान प्राप्त किया । तव सुयोग्य समझकर झरिया श्री सघ ने ता० ६-५-५४ की मगल प्रभात मे विशाल जन समारोह के साथ दीक्षोत्सव सम्पन्न किया । अर्थात् गुरुप्रवर का आपने शिष्यत्व स्वीकार किया। दीक्षोपरान्त गुरुदेव एव गुरु भ्राताओ के सहयोग से साहित्य रत्न, सस्कृत विशारद, जैन सिद्धान्त आचार्य आदि उच्चतम परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। आप लेखक, वक्ता कवि को श्रेणी मे गिने जाते है । आप द्वारा लिखित कई कृतियाँ विद्यमान हैं--प्रताप कथा कौमुदी १, २, ३ जीवन दर्णन, वीरभानउदयभान चरित्र, गीत पीयूप, विखरे मोती निखरे हीरे, आदि । आप की वक्तृत्व शैली आत्मिक तत्वो से प्लावित एव श्रोताओ के मानस स्थली को छूने वाली है। ४-प्रियदर्शी श्री सुरेश मुनिः .. आप जाति के जयशवाल दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के मानने वाले थे। श्री गया प्रसाद जी जैन एव माता ज्ञान देवी की कुक्षी से जन्म हुआ था। व्यापारी क्षेत्र मे जल्दी उतर जाने के कारण शैशवकाल मे विद्याध्ययन सीमित ही रहा । वम्बई एव कानपुर मे आप व्यवसाय कर रहे थे। सम्वत् २०१६ का चौमासा गुरदेव आदि मुनिवरो का विले पारले (वम्बई) मे था । पीपीगज निवासी त्रिलोक चन्द जी के साथ-साथ आप भी दर्शनार्थ उपस्थित हुए। जैन मुनियो के आचार विचार से आप अत्यधिक प्रभावित हुए । वस, एकदम जीवन मे भारी परिवर्तन ले आए और दुकानदारी को समेट कर गुरुप्रवर को सेवा मे अर्ज की कि आप अपना शिष्य बनाकर मुझे भी धन्य बनावे । बिहार यात्रा मे साथ हो चले और आवश्यक ज्ञान साधना भी शुरू कर दी गई । सुयोग्यता देखकर सम्वत् २०१६ माघ शुक्ला १३ की मगलवेला मे श्री घोटी सघ ने दीक्षोत्सव का अपूर्व लाश उपाजन किया । दीक्षा का सर्वश्रेय श्रद्धय प०रत्न श्री कल्याण ऋपि जी महाराज आदि मुनिवरो को है । जिनकी वलवन्ती प्रेरणा घोटी श्री सघ को मिलती रही । दीक्षाव्रत अगीकार करने के पश्चात् गुरुप्रवर के सान्निध्य मे हिन्दी, सस्कृत एव धार्मिक अभ्यास पूण किया । आप की व्याख्यान शैली बहुत ही मथर गति से चलती है। भापा मजी हुई एव सरल सुवोध होने के कारण श्रोताओ के मन को आकर्पित कर लेती है । चन्द ही वर्षों मे आपने अपने जीवन में धीर वीर गम्भीर एव धीमेपन गुण को काफी विकसित किया है । यही कारण है कि आप
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy