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मजल गांव में महान-उपकार
।। । सरस शात प्राकृतिक सुषमा की गोद मे वसा हुआ मजल ग्राम मेरी मातृभूमि है जहाँ ओसवाल समाज के पच्चास से भी अधिक सुसम्पन्न परिवार वास करते हैं । जिनका विदेशी व्यापार-विनिमय से खासा । सम्बन्ध है और प्राय सबके सब अच्छी हालत में विद्यमान हैं। धार्मिक व सामाजिक जीवन भी जिनका स्तुत्य रहा है। देव. गुरु धर्म के प्रति जिनकी अच्छी श्रद्धा भक्ति व मान्यता है । सबके सब आज से ही नहीं, अपितु काफी समय से शुद्ध मान्यता के धनी 'स्थानकवासी' जैन समाज के अनुगामी रहे हैं । अतएवा यदा-कदा सती, गण के चौमासे भी हुआ ही करते है । वस्तुत श्रमण सस्कृति के आचार-विचार व्यवरहार आदि धार्मिक संस्कारो से यहा के वाणिदे सर्वथा अनभिज्ञ नही रहे हैं । धर्म-साधना-आराधना के लिए। एक भव्य स्थानक और कौमुदी को भी मात करने वाला सकल सघ का एक जिनालय भी बाजू मे ही खडा है। जो मजल गाँव की शोभा प्रतिष्ठा मे अभिवृद्धि कर रहा है।
___ गुरुप्रवर श्री प्रतापमल जी म० सा०, मैं (रमेश मुनि) प्रियदर्शी श्री सुरेश मुनि जी, श्री 'नरेन्द्र मुनि जी, श्री अभय मुनि जी, श्री विजय मुनि जी, श्री मन्ना मुनि जी एव सती जी श्री छोग "कुवर जी म०, श्री मदन कुवर जी म० एव श्री विजय कुवर जी म० आदि साधक गण का इस रमणीय'कमनीय गाँव मे यह प्रथम प्रवेश था।
___ मुझे दीक्षित हुए काफी वर्ष बीत गये। लेकिन मातृभूमि के महामहिम दर्शन से मैं दूर था और मातृभूमि के सपूत जन भी गुरु भगवत आदि मुनि महासती मण्डल के दर्शनो से वचित थे। 'यद्यपि भक्ति से ओत-प्रोत विनती का सिलसिला कई महिनो से निरन्तर चालू था। परन्तु अनुकूल वातावरण के अभाव मे उधर पग फेरा न हो सका।
जेही के जेही पर सत्य सनेहु । सो तेही मिल हु न काहु सवेहु ।
वस भावुक जन की भक्ति ने जोर पकडा और उधर सकल सघ-जोधपुर की विनती को मान्यकर मालवरत्न गुरु प्र० श्री कस्तूरचन्द्र जी म० सा० ने सम्वत् २०२४ के चौमासे की आज्ञा प्रदान कर दी। वस, 'एक पथ अनेक काज' के अनुसार कई गांव नगरो को पार करते हुए जोधपुर का चिर स्मरणीय वर्षावास भी व्यतीत किया और मार्गवर्ती सगे सम्बन्धी जन को दर्शन देते हुए, गुरु भगवत आदि सप्त ऋपियो का मजल के पवित्र प्रागण मे पधारने का शुभ दिन भी सन्निकट आ खडा हुआ।
प्रवेश समारोह भी अपनी शानी का अनोखा था । स्वागतार्थ आए हुए भाई-बहिनो मे अथाह उमगोल्लाम का प्रवाह फूट-फूट कर जयकारो के बहाने बह रहा था । व्याख्यान वाणी मे भी जैन जैनेतर अति भाव पूर्वक ठीक समयानुसार सुबह-दोपहर मे एकत्रित होकर गुरु प्रवर के, टूटे-फूटे कुछ विचारकण मेरे व सुरेश मुनि जी के उन नपे-तुले निखरे असरकारक शब्दो को एकाग्रता पूर्वक सुना करते थे । आवाल-वृद्ध आदि मजल के मेधावी मानव शासन चमकाने-दमकाने दीपाने मे व सेवा भक्ति मे किमी