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________________ ६२ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ इन्दौर सघ का डेप्युटेशनजहा वैरागी वाल ब्रह्मचारी नाथूलाल (नरेन्द्र मुनि) विलौदा वाले और वैरागीन गटु वाई (ज्ञानवती जी) देवगढ निवासी की दीक्षा का मगलमय कार्य सम्पन्न करना था और उपरोक्त कार्य गुरु भगवत के कमनीय कर कमलो से ही सभव था। अतएव मल्हारगढ को पावन करना जरूरी हुआ। मल्हारगढ सघ ने भी गुरु प्रवर के कथनानुसार सहर्प-श्रद्धा एव निर्भयता पूर्वक होने वाले धार्मिकोत्सव को सादगीपूर्ण ढंग से सम्पन्न किया। उपरोक्त कार्य सिद्धि के पश्चात पांचो मुनि-मण्डल रामपुरा, चवलडेम, भानपुरा, रायपुर, वकाणी व झालरापाटन आया। जहा इन्दौर सघ की ओर से सवत २०२१ के वर्षावाम का विनती पत्र लेकर कतिपय अग्रगण्य श्रावक आ पहुचे । इन्दौर का सकल' स्थानकवासी सघ गुरु भगवत पर अगाढ श्रद्धा भक्ति रखता आया है। गुरुदेव की प्रभावशाली वाणी के प्रभाव से ही यहा "सेवा सदन" (आय विल खाता) नामक सस्था का सवत २००४ के चौमासे मे निर्माण हुआ था । आज तो यह सस्था काफी सवल, वलिष्ट व प्रसिद्धि प्रख्याति मे वहुत आगे बढ चुकी है । इसका कार्य क्षेत्र बहुत ही विशाल वन चुका है। विन्दु का सा लघुरूप आज सिन्धु मे परिणित होता दृष्टिगोचर हो रहा है । अतएव इसकी शानी की सवल मम्था राजस्थान, खानदेश, उत्तरप्रदेश और मालवा भर मे शायद नहीं होगी। जिसमे प्रतिवर्ष हजारो भावुक जन सप्रेम लाभान्वित होते हैं। उपरोक्त शुभ प्रवृत्ति के मार्ग दर्शक हमारे चरित्र नायक ही रहे है। राजधानी की ओर कदमकाफी अनुरोध आग्रह के पश्चात गुरुदेव ने शास्त्रीय विधानानुसार सम्वत २०२१ के चौमासे की इन्दौर मघ को स्वीकृति फरमाई। अभी समय की काफी वचत थी। अत परोपकारी मुनि-मण्डली नल खेडा, वडा गाव, सुजालपुर आदि छोटे मोटे नगर-निवासियो को दर्शन देते हुए मध्य प्रदेश की वैभव सम्पन्न राजधानी भोपाल पधारे | मुनि शुभागमन से स्थानकवासी सघ भोपाल मे आशातीत जागति आई, नव चेतना का शख बुलन्द हुआ और सघ की डावाडोल जडो मे गुरु-उपदेशामृत ने ठोस कार्य किया। जो काफी दिनो से स्थानीय सघ वाटिका उजडो जा रही थी। भोपाल सघ की ओर से यद्यपि इसी चौमासे के लिए अत्यधिक आग्रह था। लेकिन ऐसा न हो सका । चौमासे के दिन निकट भागे आ रहे थे । इसलिए आपाढ वदी तक मुनि मण्डल इन्दौर के उप नगरो मे आ पहुंचा और उधर सम्मेलन मे पधारे हुए मालवकेशरी जी म० इन्ही दिनो मे भण्डारी मिल मे आ विराजे । वम आषाढ शुक्ला तृतीया के शुभ मगल प्रभात मे हजारो नर-नारियो के अभिनन्दन-समारोह के साथ-साथ मुनि मण्डल (दसठाणा) का इन्दीर नगर में प्रवेश हुआ जो वडा ही अनूठा अनुपम दृश्य था। साहित्य व सस्कृति का केन्द्र इन्दौर - इन्दौर केवल भौतिक-विकास वैभव का ही केन्द्र नहीं अपितु सस्कृति, साहित्य, इतिहास, कल कारखाने व धर्म की सुन्दर शोभनीय सगम भूमि भी है । जैन समाज के लिए तो सचमुच ही यह सगम जगम तीर्थ सा बना हुआ है । क्योकि यहा श्रमण सस्कृति के प्रतीक दिगम्बर श्वेताम्बर एव स्थानकवासी विधारा का सुन्दर मगम है । जो हमेशा अन्य मघो के लिए एक उज्ज्वल प्रेरणा का प्रतीक रहा है। . हा, तो जन-मानम में श्रमण सघीय मुनिवरो के प्रति अटूट श्रद्धा भक्ति के साथ-माथ जहां तहाँ उन्माद के मधुर स्रोत भी फूट रहे थे। नंकडो हजारो भव्यात्माए व्याख्यानामृत पान करने लगी।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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