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________________ इन्दौर चातुर्मास : एक विहंगावलोकन त्रिवेणी का सुन्दर सुसगमःसवत् २०२० का यशस्वी चातुर्मास उदयपुर का सम्पन्न कर गुरुवर्य श्री प्रतापमल जी म० प० रत्न, वक्ता श्री राजेन्द्र मुनि जी म० श्री सुरेश मुनि जी म० एव इन चन्द पक्तियो का लेखक (रमेश मुनि) आदि मुनि हम चारो निम्बाहेडा होते हुए नीमच आए और इधर आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी म० एव तरुण तपस्वी प्रसिद्ध वक्ता मुनि श्री लाभचन्द जी म० अपना ऐतिहासिक वर्षावास साजापुर का सम्पन्न कर एव चिरस्मरणीय चातुर्मास खाचरोद का पूर्ण कर मालवकेशरी श्री सौभाग्य मल जी म० सा० आदि अनेकानेक मुनि-महासतियो का एक सुन्दर स्नेहमय त्रिवेणी सगम जुडा । जो सचमुच ही एक लघु सम्मेलन की ही झांकी प्रस्तुत करता था। ___भावी सम्मेलन विपयक एव आचार-विचार व्यवहार सम्बन्धी काफी अच्छे ढग से विचारो का विनिमय हुआ। एक दूसरे के दर्शन कर साधक मन फूले नही समा रहे थे। नीमच सघ के सदस्यो के मुख-मन एव जीवन-जीह्वा पर श्रमण संघ एव आचार्य प्रवर के प्रति अटूट श्रद्धा-भक्ति झलक रही थी । जो आज के प्रत्येक स्थानकवासी सघो के लिए एक अनुकरणीय पौप्टिक नवनीत है । होने वाली भावी सम्मेलन की पक्की रूप रेखा का सूत्रपात् एव शुभस्थान अजमेर-निश्चय की सूचना भी तार द्वारा यहा आ पहुंची। मालवकेशरी और गुरु प्रवर - सध्या की सुन्दर सुहावनी अचल मे सर्व मुनि-मण्डल विराजित था। मालव केशरी जी म० ने गुरु प्रवर श्री प्रताप मल जी म० को एक तरफ बुलाकर परामर्श दिया कि-अगला चौमासा अर्थात २०२१ का जहा मैं कहू-वही करना होगा और वह स्थान है इन्दौर । सगठन एव ऐक्यता की दृष्टि से इन्दोर सकल-सघ की सेवा करना आप के लिए तथा बनेगा तो मेरे लिए भी जरूरी है । अत भले आप सम्मेलन मे पधारे किंवा अन्यत्र विचरण करें। परन्तु जहा तक इन्दौर सघ का विनती पत्र आप की सेवा मे न पहुच जाय, वहा तक आप अन्य किसी सघ को आश्वासन-स्वीकृति प्रदान न करें। वस, भने इसको भावना-कामना समझे कि आज्ञा।" गुरु भगवत के जीवन मे यह भी एक खास विशेपता रही है-आप सदैव वडे बुजुर्ग गुरुओ के अमृत वचनो को सम्मानपूर्वक सिर चढाते आए हैं । दूसरी बात यह भी थी--कि-शात प्वभावी एव गहरे अनुभवी ऐसे मालवकेशरी जी म० की पवित्र स्वभाव की शीतल छाया मे रहने का अनायास ही यह सु अवसर हस्तगत हुआ। ऐमा दीर्घ दृष्टि से सोचकर गुरुदेव बोले कि- "आप मेरे गुरुदेव तुल्य है। मैं स्वप्न मे भी भवदाज्ञा का अतिक्रमण अवहेलना कैसे कर सकता हूँ?" अत आप के आदेशानुसार ही में कदम रखूगा । वस, आचार्य प्रवर आदि मुनिवरो ने अजमेर की दिशा ली, और हमने नीमच से मन्हारगढ की दिशा नापी।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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