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________________ ३० मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन अन्य जीवन पर्यन्त उपरोक्त दुप्प्रवृत्तियो को त्यागने की भीष्म प्रतिज्ञा ग्रहण करता है और निम्नोक्त पाच महाव्रतो को स्वीकार करता हैं---कहा भी है अहिंस सच्चं च अतेणगं च, तत्तोय वर्म अपरिग्गह च । पडिवज्जिया पंच महन्वयाणि, धरिज्ज धम्म जिण देसिय विऊ ।। -उत्तगध्ययन २१ (१) अहिंसा-मैं आज से आजीवन मनसा-वाचा कर्मणा हिमा न करेगा, न काऊँगा और करते हुए प्राणी को अच्छा भी न ममगा। (२) सत्य-~-मैं आज से जीवनपर्यत के लिए मनसा-वाचा-कर्मणा झूठ न बोलूगा न वोलवाऊंगा और वोलते हुए प्राणी को अच्छा भी न समझूगा । (३) अचौर्य में आज से जीवनपर्यंत के लिए मनसा वाचा-कर्मणा चोरी न कत्गा , न कराऊँगा और करते हुए प्राणी को अच्छा भी न समझूगा । (४) ब्रह्मचर्य-मैं आज मे जीवनपर्यत के लिए मनसा वाचा-कर्मणा अब्रह्मचर्य (कुणील) का सेवन नहीं करूंगा, न कराऊँगा और सेवन करते हुए प्राणी को अच्छा भी न समझगा। (५) अपरिग्रह-मैं आज से आजीवन मनसा-वाचा-कर्मणा परिग्रह न रखू गा न रखाऊँगा और रखते हुए प्राणी को अच्छा भी न समझूगा। (६) रात्रि भोजन-~मैं आजीवन मनमा-वाचा-कर्मणा रात्रि भोजन न करूंगा न करवाऊँगा और करते हुए प्राणी को अच्छा भी न समझंगा। सुख शान्ति का शास्वत मार्गउपर्युक्त कठोरातिकठोर पाच महाव्रतो को स्वीकार करने मे एव पालने मे जैन माधु-माध्वी वर्ग पूर्ण रूपेण उत्तीर्ण हुए और हो रहे हैं। अतएव दीक्षा जीवन का महान आदर्श है । चिर सचितअजित विपुल सम्कारो के विना इस ओर किसी का ध्यान ही नही जाता है। आज के भौतिक-वातावरण मे जहां चारों ओर वास नापूर्ति की होड लग रही है वहाँ कामना को ठुकराने वाले की मनोवृत्ति क्या महान महत्त्व नहीं रखती है ? जरा ध्यान से सुनिए, पढिए एव जीवन में उतारिए । इच्छा और आवश्यकताओ को ज्यो त्यो पूरा करना ही मानव अपना लक्ष्य मान बैठा है। ऐसी परिस्थिति में उन सव को कुचल कर सुख शान्ति से जीवन व्यतीत करने वाला सयमी क्या समष्टि एव व्यष्टि के लिये आदरणीय-सम्मानीय नहीं बनता ? अवश्य बनता है। क्योकि सुख शान्ति का इच्छुक वह मानव ठीक मार्गानुमारी वन सम्यक् परिश्रम करने मे दत्तचित्त है । जैसाकि कुप्पवयण पासठी सव्वे उम्मग्गपढ़िा । सम्मग तु जिणक्खाय, एस मग्गे हि उत्तरी । -भ० महावीर हे मुमुक्ष । हिंसामय दूपित वचन बोलने वाले, वे सभी उन्मार्गानुसारी है। राग-द्वेप रहित और आप्त पुरुपो का बताया हुमा मार्ग ही एक मात्र सन्मार्ग है । वही मार्ग सर्वोत्तम-कल्याण को देने वाला है।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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