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________________ प्रतिज्ञा-प्रतिष्ठापक की हाथ का जख्म और प्रतिज्ञा प्रण है प्राण समान जो कि मुझको प्यारा । पालू गा मन-वच-काय जो कि मैंने धारा ॥ एकदा वैराग्यानन्दी प्रताप राणकपुर के सुप्रसिद्ध जैन मन्दिर की यात्रा के लिए निकला। देवगढ से राणकपुर पर्वतीय मार्ग से अत्यधिक सन्निकट माना गया है । अतएव जल्दी पहुँचने की भावना से घोडे पर सवार होकर जा रहा था कि सहसा मार्ग मे घोडा विगड गया और धडाम से नीचे उसे दे पटका । पत्थरीली-क्करीली जमीन के कारण गिरते ही इतस्तत शरीर मे काफी चोटें आई और एक हाथ तो टूट सा गया। मार्गवर्ती मुसाफिरो ने घायल प्रताप को येन केन प्रकारेण घर पहुंचाया । हाथ का उपचार करने में काफी जन जुट गये । लेकिन कोई भी इलाज लाभदायक सिद्ध नहीं हुआ। व्यथा से -प्रताप पीडित था । अकस्मात् एक दिन मनो ही मन जिस प्रकार (नमिकुमार ने आखो की पीडा को शमन करने के लिए ध्र व प्रतिज्ञा की थी, उसी प्रकार विज्ञ प्रताप ने भी तत्काल अभीष्ट . फलदायक निम्न अभिग्रह (प्रतिज्ञा) धारण कर ली कि--"यदि सात दिन की अवधि मे मेरा हाथ पूर्णत जुड जायगा तो निश्चयमेव मे किसी की एक न सुनता-हुआ न मानता हुआ सीधे गुरु भगवत के चारु-चरण कमलो मे पहुँच कर दीक्षा ले लूंगा।" उपरोक्त प्रतिज्ञा घर वालो को भी कह सुनाई। चिकित्सक और उपचार :अभिग्रह करने मे देर ही नहीं हुई कि-उधर, सयोगवशात् टूटी हड्डियो को जोडने मे कुशल-कोविद एक चिकित्सक आ निकला । मानो मानव परिवेश मे कही से कोई देव आगया हो । वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा--"पेट की दवाई, मात्थे का इलाज, टूटी हड्डियो का सागोपाग इलाज, आदि २।" उधर वेदना से कराहते हुए वालक प्रताप को भी देखकर बोल पडा कि-'मैं देखते-देखते इस वालक का हाय ठीक करा देता हूँ।" सचमुच ही पाच-छ दिन के उचित उपचार से हाथ काफी अच्छा हो गया और दर्द भी दिनो दिन कम होता गया। लम्बे समय से उपचार करवाने पर भी जो बीमारी पिड नही छोड रही थी, वह देव-गुरु धर्म प्रसाद से शीघ्र ही दूर होती चली गई। यह अभिग्रह के चमत्कार का ही परिणाम था । पारिवारिक वन्धुजनो ने भी पुन प्रताप को वहुत समझाया। परन्तु वेग वाहिनी नदी धार की तन्ह मनस्वी प्रताप को कोई नही लौटा सके और न कोई शक्ति ही रोक सकी । अन्ततोगत्वा सगे मम्बन्धियो ने मो अव विशेप आग्रह न कर मौन स्वीकृतिलक्षणम्" मान लिया।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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