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________________ प्रथम खण्ड पारिवारिक परीक्षा २५ प्रताप देवगढ़ तो अवश्य आया, परन्तु मन नहीं लगा। अतएव घर पर ही साधु की तरह त्यागमय जीवन विताने लगा। पारिवारिक सदस्यगण अपनी मनोकामना पूरी न होती देखकर निराश एव परेशान थे। और चेतावनी मिलीउभय काल जब धर्मप्रवृत्ति को करते देखा तव बुआजी झु झला कर वोली कि-"यदि अव विना पूछे घर से कही भी भाग गया तो, तुझे ताले मे बन्द कर दिया जायगा। अभी तो न बोलना, पढना-लिखना एव न कपडा पहनना ही आता है और दीक्षा लेने को उतावला हो रहा है ? दीक्षा किसे कहत हैं ? कैसे पाली जाती हैं ? कुछ पता भी है ?" इस प्रकार गरम-नरम अनेको प्रकार की डाटफटकार दी और काही पुन भाग न जाय, इस कारण मुआजी स्वय पूरी-पूरी देख-रेख करने लगी। साथ ही साथ पारिवारिक सदस्यो ने गुप्त रूप से ऐसा विचार-विमर्श भी किया कि-"प्रताप के मजुलमय जीवन मे समय रहते विवाह-स्नेह का दीप प्रज्ज्वलित करवा दिया जाय, ताकि-स्नेह सम्बन्ध मे स्वत इमका पग बन्धन हो जायगा । वस्तुत फिर कही जाने का नाम तक नही लेगा।" मेवाड प्रान्त मे ही क्यो भनेको प्रान्तो मे लघु-अवस्था मे भी विवाह कर लिया करते है। यह रिवाज पहिले भी था और आज भी किसी न किसी रूप मे जीवित है। इमलिए भुआजी आदि सम्बन्धियो की दृष्टि मे विवाह का तरीका समयोचित ही था। जीवन की मजबूती"अभोगी नोवलिप्पइ" अर्थात् वैरागी वीद उस लुभावने मन-मोहक स्नेह रागभाव मे वन्धने वाला कहाँ था ? चूँकि-गुरु-प्रसाद से प्रताप को चिप-अमृत एव सत्य-असत्य का भली-भाति भान हो चुका था। तथा यह भी ज्ञात हो चुका था कि जब यह शरीर ही मेरा नहीं है तो भला ! ये स्वार्थी वन्धु-वाघव मेरे कव होंगे? यह तो चन्द दिनो का ही लाड-प्यार स्वप्न सा दृश्य रहता है। फिर वही ताडना-तर्जना की रफ्तार-इस कारण सचेत रहना और इस मकडी जाल मे मुझे कदापि मोहित नही होना चाहिए। "क्षमा वीरस्य भूषणम्” तथा “मौनिनः कलहो नास्ति' गुरुदेव द्वारा दी गई उपरोक्त अमूल्य शिक्षाओ को वार-बार स्मरण करता हुआ वीर प्रताप उन कडवी कठोर सारी घूटो को अपने परीक्षा का समय जानकर तथा अमृत मानकर पीता गया। किन्तु महान् मना प्रत्युत्तर में केवल चुप और प्रसन्न चित्त | यह है महापुरुप बनने की अद्वितीय निशानी । कहा भी है धर्म वही है जो सकट की, घडियो में भग न हो। सुख की मस्ती मे तो कहो, फिसको धर्म का रगनहो ?
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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