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________________ 252 | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्य की स्पप्ट-वादिता के कारण जन-मानस मदा ही आप जी के प्रति आकर्पित एव श्रद्धावान् रहा है / ऐसे महान् तपोपूत मन्त का अभिनन्दन करते हुये हम सब को व समूचे जैन समाज को अपार हर्प व उन्लास का होना स्वाभाविक है / यह अभिनन्दन ग्रन्य मेवाड भूपण श्री जी की समाज सेवाओ के प्रति एक श्रद्धा का सुमन तथा समाजोपयोगी प्रकाशन हो, यही शुभ कामना है / यह एक महान् सयमी सत के प्रति हमारा सही और रचनात्मक अभिनन्दन है / अन्त में हमारी हार्दिक कामना है कि मेवाड भूपण जी चिरजीवी होकर सघ और शासन के अभ्युदय के महान्, उत्तरदायित्व को सफलता के साथ वहन कहते रहे। तुम सलामत रहो / हजार वर्ष, हर वर्ष के दिन हो पचास हजार / सत्यं शिवं सुन्दरम् के प्रतीक -महासती मदनकु वरजी म० "ससार द्वेष की आग में जलता रहा, पर सन्त अपनी मस्ती मे चलता रहा। मन्त विष को निगल करके भी सदा, ससार के लिये अमृत उगलता रहा // परोपकार, दया, स्नेह, मधुरता, शीतलता आदि सतो का मुख्य गुण है। कहा है साधु चन्दन बावना शीतल ज्यारो अग। लहर उतारे भुजग को दे दे ज्ञान को रग / / इन्ही सन्न रत्नो मे परम श्रद्धेय आदरणीय पण्डित रत्न मेवाड भूपण गुरुदेव श्री प्रताप मुनि जी महाराज भी एक है / आपका जीवन बहुत सुन्दर है / आपके हृदय मे क्षमता, सहिष्णुता, धैर्यता, मधुरता, सरलता, नम्रता, करुणा इन्यादि ममी सन्तोचित गुण विद्यमान है। आप श्री का मेरे पर अत्यधिक उपकार है / मुझे ज्ञानदान आपने ही दिया / मैं आपकी पूर्ण आभारी हूँ / तथा साथ ही यह कामना करती हूँ कि प्रभु आप को चिरायु बनाये, जिसमे कि-जाति, समाज तथा देश को आप द्वारा संप्रेरणा गिलती रहे एव हमारा देश, हमारी जाति, हमारी समाज निरन्तर आगे वढती रहे / इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ उसी जीवन का स्मरण करता है जो सूर्य जैसे प्रकाश, चन्द्र सी शीतलता, नदी प्रवाह मी सरलता, फूलो सी महक और फलो सा माधुर्य का खजाना लुटाता हो / वही जीवन वदनीय एव अर्चनीय माना है। तदनुसार आप श्री का साधनामय जीवन तद् प मुझे प्रतीत हुआ है। सेवा-समता-करुणा, परोपकार एव सहिष्णुता आदि गुण-सुमनो से महकता हुआ जीवन-पुप्प है जो मानवता के उपवन मे स्वयं महत न्हा है और अपने शात उपदेशो द्वारा श्री सघ स्पी उपवन को भी महकाया एव चमकाया है। जिनका जीवन प्रवाह निरतर अहिना सयम एव तप की त्रिवेणी में अठखेलिया करता रहा है। परम पूज्य श्रद्धेय प्रात स्मरणीय मेवाड-भूपण गुरुदेव श्री प्रतापमल जी म० के अमस्य गुणो को शब्द वन्धन मे बान्धना एक निरर्थक प्रयास है / मत्य शिव सुन्दरम् के प्रतीक मापका पुनीत चरित्र अनत काल एव युग-युगान्तरो तक जीवनोवान का अमर नदेश देता रहेगा। और आपको यश सुरभि मद्गुण एव माधना, जनता के हृदय मे श्रद्धा का विषय बनी रहेगी।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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