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________________ ६ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ मेरुवाड का मेवाड़ मेवाड भूमि का वास्तविक नाम 'मेरुवाड' था। मेरुवाड अर्थात् पर्वत ही जिमकी अभेद्य दीवार है । उसे मेरुवाड कहा जाता है । अपभ्र श बनकर 'मेवाड' रूढ बना है। दरअसल मेवाड प्रात का अधिक भू भाग उवड-खाबड एव छोटी-मोटी पर्वतावलियो से घिरा हुआ होने से जहाँ-तहाँ जल-स्थल की काफी विषमता-विचित्रता पाई जाती है। ___ नक्शे का प्रतिनिधि-एक पापड प्राचीन एक दत कथानुसार एक समय एक अग्रेज-अधिकारी ने मेवाड राणा से अपने (मेवाड) प्रात का णीघ्र नक्शा मगवाया । तब मेधावी राणा महत्त्वाकाक्षी उम अग्रेज अधिकारी की भावना को भाप गये और नक्शे के बदले एक मक्का धान्य का बना हुआ पापड सिकवाकर भिजवा दिया। पापड को देखकर आग्लाधिकारी एकदम आग बबूला हो कर बोल उठा—'Vhat is this ?" अरे । यह क्या ?" मैंने पापड नही, नक्शा मगवाया था—देखने के लिए।" तव आगतुक मेवाडी वीर ने उसे समझाया कि-साहेव | जिस प्रकार यह पापड कही ऊंचा कही नीचा तो कही कुछ-कुछ सम जान पड रहा है, उसी प्रकार मेवाड देश भी जहां-तहां उतार-चढाव की विकट-वकट घाटियो से भरा है । वस, नरेश द्वारा पापड भेजने का यही मतलव है और नक्शा समझाने का सार भी यही है । नवीन रहस्य श्रवण कर आग्ल-अधिकारी खूब मुस्कराया और आगतुक महाशय की पीठ थपथपाई । वस्तुत यह बात समझते उसे देर भी नहीं लगी कि इस प्रात को सही सलामत हजम करना एक टेडी खीर है। चूंकि-वीर धीर एव कठोर परिश्रमियो के खून से इस प्रदेश का सिंचन हुआ और हो रहा है । अतएव मेवाड-प्रात एक दृढ मजबूत और अभेद्य अजेय दुर्गवत् है।। धरा अचल मे विशाल परिवार जहां-तहाँ कही-कही समतल मैदान पाया जाता है, वहां ओसवाल, पोरवाल, अग्रवाल, वीरवाल, राजपूत, मुस्लिम एव मीणा-आदिवासी आदि नानाविध जातियाँ, हजारो-लाखो मेवाड माता के सपूत अपने-अपने उद्योग धन्धो एव खेती की सुविधा-सुगमतानुसार वास किये हुए हैं । कृषि-कर्म-व्यापार एव पशु-पालन आदि-आदि मुख्य व्यवसाय हैं । पर्वतावलियो मे अभी-अभी कही-कही चादी-अभ्रक-लोहाशीशा, ताम्बा एव कोयले आदि धातु उपलब्ध होने लगी है। पर्वतो की कठिनाइयो के कारण एव विश्व-विख्यात राजपूती शौर्य की धाक के कारण वाहरी शत्रु मदेव पग रखने मे डरते रहे हैं । किन्तु गृह-क्लेश, गृह-युद्ध एव पारस्परिक विद्वे प-ईर्ष्या फूट-लूटकूट की वजह से बाहर से मुस्लिम-सत्ता अवश्य आई । लेकिन ज्यादा टिक न सकी। फर्मवीर-धर्मवीर को जन्मदातृ-मेवाड जहाँ इस भूमि ने राणा प्रताप, महाराणा सागा, वापा रावल, जैसे अनेकानेक प्रणवीरकर्मवीर नरवीरों को जन्म दिया है, तो दूसरी ओर इस पवित्र माता ने स्व० चरित्र चूडामणि पू० श्री खूबचन्द जी म० पू० श्री सहश्रमलजी म० पू० श्री गणेशलाल जी म० पू० श्री एकलिंगदास जी म० पू० श्री मानमलजी स्वामीजी म० प० प्र० श्री देवीलालजी म० तपस्वी माणक चन्दजी म० एव हमारे चिरायु चरित्रनायक 'गुरु प्रताप' आदि ऐसे शत-सहस्रो आध्यामिक सत-सती महा मनस्वियो को, भामाशाह जैसे कर्मठ श्रावक और मीरा एव पन्नाधाई जैसी निर्भीक उपासिकाओ को जन्म दिया है । जिन्होंने
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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