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________________ २४४ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ तुम पद भेटवा अतिगणो टल वलू, पंखजो होयतो सहिय आवि मिल्यू, मेह ने मौर जिम कमल भमरो रमे, तेम अरिहंत तू चित्त मोरे गमे,, जैन कवियो रा सर्वाधिक भक्ति तीर्थकरो और गुल्मी रे प्रति रही है, पण श्रीमदरभगवान जिका अबार जैन मान्यता रे हिमाव सू महाविदेह वपेत्र मे तीर्थकर के रूप मे विचर रह या है बारे प्रति तो जैन कविया री भक्ति भावना उमड पडी है, कवि ऊपरली पक्ति मे कहवे है कि म्हारे मन मे तो थारे दर्शन री घणी लाग रही है, पण थे दूर घणा तो हू पहुच को सकुनी, म्हारा मन थामू मिलणे ने इतो छटपटारह यो है के प्रकृति म्हारे पाखा लगा देती तो ह उड थासू जा मिलतो, ध्यान करता वक्त या सुपने मे भी थे म्हने अ, मिलो तो थाने देखते ही म्हारी सव चिन्ता दूर हुयजावे, जिस तरह मोर ने मेह और भवरे ने कमल बहुत ही प्यारा लागे, विमी तरह सू है अरिहन्त भगवान ) थे म्हारे चिन्त मे बस रह या हो, इस तरह रा भक्ति गीत सैकडो नही हजारो है, श्रीमन्दर भगवान रे तरेइ श्वेताम्बर जैन समाज मे सब सू वडोतीर्थ श्री सिद्धाचल जी या शतु जयजी मान्याजावे है, वे तीर्थ प्रति भी जैन कविया री भक्ति भावना विशेप रूप सू प्रकट हुयी है, राजस्थान रा मोटा कवि समयसुन्दर शत्रु जय स्तवन मे केवे है धन धन आज दिवस घडी, धन धन सुज अवतार, शत्रु जय शिखर ऊपर चढी, भेट्यौ श्री नाभि मल्हार, चद चकोर तणी परह.निरखता सूख थाय, हियडु हेजड, उल्हसइ आणद अंगि न माय,, दु.ख दावानल उफममियो, बुठऊ अभिय मइ मेह, मुझ आगणि सुरतरु फल्यू भागऊ भव भ्रमण संदेह, मुझे मन उल्लट अनिघणउ, मन मोहयू रे शत्रजय भेटतण काज' लालमन मोहयु रे, संघ करइ बघावणा मन मोहयू रे, तीर्थ नयण निहालि, आज सफल दिन म्हारउ, मन मोहयु रे, जात्राकरी सुखकार, दुरगति ना भय दुःख टत्या, पुगी मन री आस, लाल मन मौह यौ रे,, अठे घणा उदाहरण देणा सभव कोनी, म्हारे सपादित समय सुन्दरकृति-कुसुमाजली, जिनराजसूरि और विनयचद कुसुमाजली, जिनर्प ग्रथावली, वर्नवर्द्धन ग्रथावली, ज्ञानसार ग्रथावली आदि ग्रथ भक्तलोग वाचे आई भीलावण है। राजस्थानी माहित्य रो सवसू अधिक निर्माण जैन कविया कर्यो, दूजी नम्बर चारण कविया को है। विया प्राय सिगली जातवाला राजस्थानी भक्ति साहित्य वणायाँ है, क्योकि भक्ति मे कोई भेद भाव ऊच-नीच कोनी, आ तो हृदय री चीज है और वो सगला मानखा मे ऐक जिमा मिले है। हजार भजन राजस्थान रे मदिरा मे और जम्मा जागरण मे गाइजे है, वा मे अनेक तरह रा देवी देवता रे प्रति कविया री घणी मृद्धा और भक्ति रो दर्शन हुवे, मिनख लुगाई रो भी भक्ति मे कोई भेद कोनी, राजस्थान रा मीराबाई तो सगला भक्ता मे मिरमोड मानयो जावे है वारा भजन उतर भारत मे तो प्राय सव जागा प्रसिद्ध है, दक्षिण भारत री भापाओ मे भी वारो अनुवाद छप्यो है अर्थात् भक्ति रे स्पेत्र मे मीराबाई रो नाम समार प्रसिद्ध है, अवार विया तो वारे नाम मू हजार भजन छप चुक्या है, पण
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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