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________________ चतुर्थ खण्ड धर्म, दर्शन एव सस्कृति राजस्थानी रो भक्ति साहित्य | २४३ तीर्था और गुरुआ वगैरहरा भक्ति गीत और काव्य ज्यादा मिलणे लागे है । सवत् १४१२ मे रचोडो गोतमस्वामी रास री कुछ पक्तियां नीचे दी जा रही हैं । वा मे कवि हृदय री भक्ति भावना वडे अच्छे रूप में प्रकट हुई है । इये राम री रचना खरतरगच्छ रा उपाध्याय विनयप्रम बहुत ही सुन्दर रूप मे करी है । गौतम स्वामी समोशरण में पधार रहया है वेरो वर्णन करते हुये कवि लिखे है आज हुवो सुविहाण, आज ए वेलिमा पुण्य भरौ । दीठा गौतम स्वामी, जो नियनयण अमिय सरौ ।। भगवान महावीर स्वामी रो निर्वाण हुयो जणे भक्तिरागवश वारा प्रथम गणधर गौतमस्वामी जी को विलाप कर्यो है वो बारी हृदयगत भावनायें पूर्ण रूप सू प्रकट करे है, वे कैवे है इण समे ये समिय देखि, आप कनासु टालियो ऐ । जाणतो ऐ तिहुअण नाह लोक व्यवहार न पालियो ऐ ।। अतिभलो एक किधलोस्वामी, जाणयो केवल मागसे ए। चिन्तव्यो ऐ बालक जेम, अहवा केडे लागसे ऐ ।। हूं किम एक वीर जिणद, भगतिहि भोले भोलव्यो ऐ। आपणो ऐ ऊचलो नेह नाहन संपय साचव्यो ऐ ।। अर्थात् भगवान महावीर आपरे अतिम निर्वाण ममय मे मने दूर भेज दियो, लोक व्यवहार में जो अतिम टेम मे आपारा टावरा ने दूर हवे तोही नजदीक बुलायो जावे है। भगवान थे लोकव्यवहार रो पालन कर्यो कोना, ये देख्यो के है केवलज्ञान माग सू या वालक रे माफक थारै लारे लाग जासू । म्हारो थासू साचो स्नेह है पण थे तो वीतराग हो ये वास्ते स्नेह राख्यो कोनी । अत मे गोतमस्वामी भगवान रे प्रति राग हो जिके ने छोड र वीतरागी वणगया । १६वी शताब्दी रे जन कवि भक्तिलाभ श्रीमधर भगवान रे स्तवन मे भक्ति री निर्मल गगा वहाई है वेरी भी थोडी पक्तियाँ आपरे सामने उपस्थित कर रह्यो हूँ सफल ससार अवतार ऐ हूँ गिणु, सामि श्रीमंधरा तुम्ह भगते भणु , भेटवा पायकमल भाव हियडे धरूं', करिय सुपमाय जे वीनसु ते मुणो, दिवस ने राति हियडे अनेरो धरूँ, मूढमन रिझवा वलिय माया करूँ, तूहि अरिहत, जाणे जिसी आचरु, तेमकर जेम संसार सागरतरू, ऐक अरिहत त् देव बीजो नही, ऐक ऐह आधार जग जाणजो अमसही, जयो जयो जगगुरु जीव जीवनधरा, तुम समो वड नही अवर वालेसरा, अमिय समवाणि जाणु सदा साभलु, बारवर परसदा माहि आवि मिलू , चित्त जाणु सदा सामिपय ओलगु किमकरू ठाम कुडल गिरि वेगलू,, मौलिडा भगति तू चित्त हारे किसे, पुण्य सजोग प्रभु दृष्टिगोचर हुसे, जेहने नामे मन वयणतन उल्लसे, दूर थी ढोकडा जेम हियडे वसे, भल भलो ऐणि संसार सहू ऐ अछ, सामि श्रीमधरा ते सह तुम पछे, ध्यान करन्ता सुपन माही आवि मिले' देखिये नयण तो चित्त आरति टले,, . स्याम सोहावणा नाम मन गह गहे, तेह सू नेह जे बात तुम जी कहे,
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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