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________________ २२० ! मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ करने का मार्ग भी उन्होने सबके लिए खोल दिया-चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, चाहे वह शूद्र हो, चाहे और कोई। महावीर ने जनतन्त्र से भी आगे बढकर प्राणतन्त्र की विचारधारा दी । जनतन्त्र में मानव न्याय को ही महत्व दिया गया है । कल्याणकारी राज्य का विस्तार मानव के लिए है, समस्त प्राणियो के लिए नहीं । मानव-हित को ध्यान मे रखकर जनतन्त्र मे अन्य प्राणियो के वध की छूट है । पर महावीर के शासन मे मानव और अन्य प्राणी मे कोई अन्तर नही । सवकी आत्मा समान है। इसीलिए महावीर की अहिंसा अधिक सूक्ष्म और विस्तृत है, महावीर की करुणा अधिक तरल और व्यापक है । वह प्राणी-मात्र के हित की सवाहिका है। मेरा विश्वास है ज्यो-ज्यो विज्ञान प्रगति करता जाएगा, त्यो त्यो महावीर की विचारधारा अधिकाधिक युगानुकूल बनती जायगी । उसमे शाश्वत सत्य निहित है जो अचल है । यह अचल सत्य विज्ञान के साथ आगे बढकर ही सचल वन पायगा, केवल रूढियो की धूल ही छिटक कर पीछे रह जायेगी, नष्ट हो जायगी।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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