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________________ 3.चतुर्थ खण्ड धर्म-दर्शन एव सस्कृति ,भारतीय इतिहास का लौहपुरुप चण्डप्रद्योत | २१५ जो चेटक की पुत्री थी ।२१ एक का नाम अगारवती था जो सु समारपुर२3 के राजा धधुमार की पुत्री थी। इस अगारवती को प्राप्त करने के लिए प्रद्योत ने सुसमारपुर पर घेरा डाला था। वह अगारवती पक्की श्राविका थी। कथा मरित्सागर मे अगारवती को अगारक-नामक दैत्य की पुत्री कहा है 3' उसकी एक रानी का नाम मदन मजरी था, जो दुम्मह प्रत्येक बुद्ध की लडकी थी। आवश्य नियुक्ति दीपिका मे प्रद्योत के गोपालक और पालक इन दो पुत्रो का उल्लेख हैं । " स्वप्नवानवदत्ता मे भी इन दो पुत्रो के साथ एक पुत्री का भी उल्लेख हुआ है उसका नाम वासुदत्ता दिया है, आवश्यक चूणि मे वासवदत्ता नाम आया है। उसे प्रद्योत की पत्नी अगारवती की पुत्री कहा है ।२६ वौद्ध साहित्य मे गोपालक की मां को वणिक पुत्री बताया है उसके भव्य रूप पर मुग्ध होकर प्रद्योत ने उसके साथ विवाह किया था। हपं चरित्र मे उसके एक पुत्र का नाम कुमारसेन दिया है। कुछ ग्रन्यो मे खडकम्म को प्रद्योत का एक मत्री वताया है. कुछ ग्रन्थो मे मत्री का नाम भरत दिया है । जन साहित्य के पर्यवेक्षण से ज्ञात होता है कि चण्ड-प्रद्योत प्रारभ मे जैन धर्मावलम्बी नही या। राजा उदायन उसे बन्दी बनाकर ले जाते हैं । मार्ग में पर्युपणपर्व आ जाता है। राजा उदायन के उस दिन पौपधोपवास था, अत. उनका भोजन बनाने वाला रसोइआ चण्टप्रद्योत से पूछता है कि आप क्या भोजन करेंगे ? तव चण्डप्रद्योत को वहुत आश्चर्य हुआ । रसोइए ने पर्युपण महापर्व की वात कही और कहा इसी कारण महाराजा उदायन के पीपधोपवास है। तव चण्डप्रद्योत ने कहा कि मेरे माता-पिता भी श्रावक थे, इसलिए मेरे भी उपवास है । जब उदायन ने उसे मुक्त किया तव वह २१ आवश्यक चूणि, उत्तरार्द्ध पत्र १६४ २२ आवश्यक चूर्णि भाग १, पत्र ६१ २३ मुनि श्री इन्द्रविजयजी का मन्त८७ है कि सु समारपुर का वर्तमान नाम 'चुनार' है, जो जिला मिरजापुर मे है। २४ आवश्यक चूणि भाग २, पत्र १६६ २५ मध्यभारत का इतिहास प्रथम खण्ड पृ० १७५ ले० 'हरिहर निवास द्विवेदी' २६ उत्तराध्ययन ६ अ० नेमिचन्द्र वृत्ति १३५-२-१३६२ २७. आवश्यक नियुक्ति दीपिका, भाग २, पन ११०-१ गा १२८२ २८ स्वप्नवासवदत्ता महाकाव्य-भास २६ आवश्यक चूणि उत्तरार्द्ध पत्र १६१ ३० (क) अगुत्तर निकाय अठकथा १११११० (ख) उज्जयिनी इन ऐंशेट इण्डिया पृ० १४ (ग) मध्यभारत का इतिहास भाग १-पृ १७५ द्विवेदी लिखित ३१ तीर्थकर महावीर भाग २, पृ० ५८७ ३२ लाइफ इन ऐशैट इण्डिया ३६४ ३३. उज्जयिनी-दर्शन पृ० १२ मध्यभारत सरकार ३४ (क) तन्ममयुपवामोऽद्य पितरौ श्रावको हि मे। -उत्तरा० भावविजय की टीका म०१ श्लोक०१८२ पत्र ३८६-२
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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