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________________ चतुर्थ खण्ड धर्म, दर्शन एव सस्कृति तीर्थंकर महावीर | २०५ उन्होने अपने उपदेशो तथा सिद्धान्तो को किसी धर्म-विशेप की सीमा मे आवद्ध नही किया । वह जो कुछ कहते थे, मानव मात्र के लिए कहते थे । उनके कुछ उपदेश देखिए - _ "जो मनुष्य प्राणियो की स्वय हिंसा करता है, दूसरो से हिसा करवाता है और हिंसा करने वालो का अनुमोदन करता है, वह ससार में अपने लिए वैर वढाता है।" "जो मनुप्य भूल से भी मूलत असत्य, किन्तु ऊपर से सत्य मालूम होने वाली भापा बोलता है, वह भी जब पाप से अछूता नही रहता तब भला जो जान बूझकर अमत्य वोलता है, उसके पाप को तो कह्ना ही क्या? ___ "जैसे ओस की वू द घास की नोक पर थोडी देर तक ही रहती है, वैसे ही मनुष्य का जीवन भी वहुत छोटा है, शीघ्र ही नाश हो जाने वाला है। इसलिए क्षण भर को भी प्रमाद न करो।" "शान्ति से क्रोध को मारो, नम्रता से अधिकार को जीतो, सरलता से माया का नाश करो और सतोप से लोम को काबू मे लाओ।" ___ "ससार मे जितने भी प्राणी हैं सब अपने किये कर्मों के कारण हो दुखी होते हैं । अच्छा या वुरा, जैसा भी कर्म हो, उसका फल भोगे बिना छुटकारा नही मिलता।" ___"अपनी आत्मा को जीतना चाहिए । एक आत्मा को जीत लेने पर सब कुछ जीत लिया जाता है।" "जिम प्रकार कमल जल मे पैदा होकर भी जल से लिप्त नहीं होता उसी प्रकार जो ससार मे रहकर भी काम-भोगो से एकदम अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।" ___ 'चांदी और सोने के कैलाश के समान विशाल असख्य पर्वत भी यदि पास मे हो तो भी मनुष्य की तृप्ति के लिए वह कुछ भी नही, कारण कि तृष्णा आकाश के समान अनन्त है।" उनके उपदेश समस्त मानव जाति के लिये थे। यही कारण था कि उनके समवशरण मे सभी धर्मो के लोग, यहाँ तक कि जीव-जन्तु भी सम्मिलित होते थे । महावीर जैन थे, कारण कि उन्होने आत्म विजय प्राप्त की थी । जैन शब्द 'जिन' से बना है जिसका अर्थ है- अपने को जीतना।" मैं प्राय विभिन्न अम्नायो के व्यक्तियो से पूछा करता ह कि महावोर किम सम्प्रदाय के थे? दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी या तेरापथी ? सच है कि वह किसी भी सम्प्रदाय के नहीं थे, सव उनके थे। भाषा की क्रान्ति दूमरी वात कि भापा के क्षेत्र मे महावीर ने क्रान्तिकारी कदम उठाया। उनके जमाने मे सस्कृत का जोर था। वह परिष्कृत भाषा थी। लेकिन जन सामान्य के बीच अर्द्धमागधी का चनन था। महावीर चू कि अपना सदेश साधारण लोगो तक पहुचाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अर्द्धमागधी को अपने उपदेशो का माध्यम बनाया। वह चाहते तो सस्कृत का उपयोग कर सकते थे, लेकिन उस अवस्था मे उनके विचार शिक्षित तथा उच्च वर्ग तक ही सीमित रह जाते । भविष्य-दर्शन इस तरह हम देखते हैं कि महावीर एक क्रान्तिकारी व्यक्ति थे। उन्होने ऐसे बहुत से काम किये, जो उनके अद्भुत साहस तथा पराक्रम के द्योतक हैं। क्रान्तिकारी दृप्टा भी होता है। महावीर की निगाह वर्तमान को देखती है, पर वही ठहर नहीं जाती। वह भविष्य को भी देखती है। महावीर के सिद्धान्त इतने क्रान्तिकारी हैं कि वे सदा प्रेरणा देंगे । आवश्यकता इस बात की है कि हम उनके अनुसार आचरण करे।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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