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________________ तृतीय खण्ड प्रवचन पखुडिया जीने की कला | १३३ कर्तव्यपरायण बनो:आज हम देख रहे हैं कि भारतीय व्यापारीवर्ग, कर्मचारी एव किसान वर्ग ईमानदारी के स्थान पर पर्याप्त मात्रा मे वेईमानी फैला रहे हैं सभी कर्तव्य भ्रष्ट दिग्मूढ से हो रहे है । उन्मार्ग मे प्रविष्ट होकर जीवन मे आनन्द की थोथी कल्पना कर रहे हैं । व्यापारी वर्ग आज महत्वाकाक्षी बन चुका है। उनके नामने नीति-न्याय ईमानदारी का उतना महत्व नहीं जितना धन-ऐश्वर्य का है । वस्तुत आमदनी के लिए वह फिर देश-द्रोह, धोखाघडी, दगाखोरी, चोरी, वस्तु मे भेल, माल मे मिलावट, नाप-तोल-मोल मे मनमानी मुनाफाखोरी लेना ही उमका ध्येय रहता है। इस प्रकार अनेक काले कर्म छोटे-मोटे समूचे व्यापारी वर्ग मे दिनो-दिन पनप रहे है। सरकार डाल-दाल तो व्यापारी वर्ग पत्ते-पत्त पर घूम रहे हैं। फिर जीवन मे क्षेम की कल्पना करना क्या निरीह मूर्खता नही है ? क्या आग मे वाग लगाने जैसा दुस्साहस नही है ? एक कवि की मधुर स्वर लहरी ठीक ही बता रही है कैसे हो कल्याण करणी काली है, नहीं होगा भुगतान हुडी जाली है। भ० महावीर ने साधु एव व्यापारीवर्ग को निजकर्तव्यो का समीचीन रूप से ज्ञान कराते हुए कहा है जहा दुमस्स पुप्फेसु भमरो आवियइ रस । ण य पुप्फ फिलामेइ सो य पीणेइ अप्पय ।। -दशवकालिक अ० १ गा० २ जिस प्रकार भौरा फलो से रम ग्रहण करके अपने आप को तृप्त करता हुआ रस दाता को किसी प्रकार का कप्ट नही होने देता। उसी प्रकार साधु जीवन के पक्ष मे गृहस्थ जन पुरप तुल्य माने हैं उनके घरो से साधक आवश्यकतानुमार उतनी ही सामग्री ग्रहण करे ताकि अपना कार्य भी बन जाय और गृहरथ को भारभूत न मालूम हो । वैसे ही व्यापारी पक्ष मे भी ग्राहक जन रस दाता है। उनके साथ व्यापार वृत्ति ऐसी होनी चाहिए कि उन्हे दु खानुभूति न होने पावे और नफा भी उतना ही ले कि वह प्रसन्न मुद्रा मे दे सके । वह वापिस उसी दुकान पर आने को स्वय इच्छा करे । परन्तु आज देखा जाता है कि व्यापारिक जीवन काफी वदनाम हो चुका है। इसका मुख्य कारण व्यापारी वर्ग स्वय अपने जीवन मे खोजे । व्यापारियो के जीवन मे निम्न गुण होना जरूरी है-वाणी मे मधुरता-नम्रता-हाथो की सच्चाई, जीवन मे प्रमाणिकता, जन-जन का विश्वासी एव देश-गांव के प्रति वफादारी । इस प्रकार कर्त्तव्य परायण होकर जीवन वीताना सीखे। एक अग्रेज तत्त्ववेत्ता ने कहा है-"Honesty is the best IPolic)" प्रामाणिकता उत्तम व श्रेष्ठ नीति है। नैतिक जीवन की वाह वाह । नैतिक जीवन पर एक मार्मिक घटना इस प्रकार सुनी गई है~भारत मे अग्रेजो का शासन था। उस समय ईस्टइन्डिया कम्पनी का व्यापारिक कारोवार काफी तेज था। कम्पनी एवं कलकत्ता के एक मेठिया फर्म के साथ लाखो का व्यापार विनिमय चल रहा था। फर्म के खास मुख्य कार्यकर्ता मालिक कही गये हुए थे। इधर सहमा कम्पनी की तरफ से तकाजा हुआ कि-अपना कार्य का पूर्ण हिसाब कर लिया जाय । तदनुसार मुनीम ने पूरा हिनाव निपटा दिया। अब कम्पनी की तरफ ने रोठिया फर्म का कोई देना-लेना बाकी नहीं रहा। दोनो ओर से हस्ताक्षर भी हो गये । कुछ दिनो वाय ../
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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