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________________ १३४ ) मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्य मालिक आया और एक वक्त उसने सरसरी निगाह से जमा-खर्च के बही-खाते देखे तो कम्पनी के दस हजार रुपये फर्म मे जमा पाये गये । मुनीम से पूछा गया आपने हिसाब कैसे कर दिया ? जवकि कम्पनी के दम हजार रुपये फर्म मे जमा हैं । अस्तु आप शीघ्र जाकर कम्पनी के मेनेजर को ये रुपये दे आवें । मुनीम-फर्म और कम्पनी का खाता पूग तो हो चुका है। इमलिए दस हजार की फर्म मे वचत मान कर रहने दो। नही मुनीम जी | मुफ्त का घन मैं अपनी फर्म मे नही रख सकता । मूल को सुधारना अपना काम है । अपनी उज्ज्वल परम्परा सत्य पर आधारित है । ७४॥ का अक प्रामाणिकता का ही प्रतीक माना है । जैसा कि कहा है सातो कहे सत राखजो लक्ष्मी चौगुनी होय । सुख दुख रेखा कर्म को टाली टले न कोय ।। मुनीम-मैं तो नही जा सकता, अगर साहव विगड जाय तो कौन निपटेगा। श्रीमन्त स्वय थैली मे रुपये लेकर पहुचे। टेवल पर रखकर सारी स्थिति कह सुनाई । श्री मन्त की प्रामाणिकता पर मेनेजर अत्यधिक प्रभावित हुआ। वह बोला--सेठ । दूमरा विश्वयुद्ध होने वाला है। इसलिए रग महगा होने वाला है अत उसकी खरीदी कर लो। कहते हैं कि अग्रेज अधिकारी के कहानुसार उसने रंग खरीद लिया, जिसमे उनको लगभग चालीस लाख का नफा हुआ । कहाँ दम हजार, और कहाँ चालीस लाख । यदि नैतिक जीवन न होता तो कहिए उन्हें ऐसा सुनहरा अवसर मिलता ? इमलिए जीवन मे प्रामाणिकता होनी चाहिए । कवि का कथन है कि -- अन्यायी वनकर कमी दो न किसी को कष्ट । कत्तंव्य नीति मे रत रहो कर दो हिंसा नष्ट । इसीप्रकार सरकारी कर्मचारी वर्ग को और किसान वर्ग को भी अपने कत्तव्यो का ज्ञान होना चाहिए। आज पर्याप्त मात्रा मे सभी कर्मचारी वर्ग मे रिश्वतखोरी पनप रही है । यह दुहरा जीवन, जनता एव सरकार के साथ विश्वासघात जैसा है। इससे राष्ट्र का बहुत बडा अहित हो रहा है। भ्रष्टाचार, अन्याय को वढावा मिलता है। भ्रष्टाचार को बढावा देने का मतलब है-जान बूझ कर समाज एवं राष्ट्र को अध पतन मे घसीटने जैसा है । कवि की वाणी अक्षरश सत्य बोल रही है न्यायालय मे एक भाव से गीले-सूखे सब जलते हैं । रिश्वत खा-खाकर अधिकारी न्याय नाम पर पलते है। -उपाध्याय अमरमुनि वस्तुत भ्रष्टाचार को घटाने का यही प्रशस्त मार्ग है कि-रिश्वतखोरी, खाना और खिलाना बन्द करना चाहिए तभी पूर्णत कर्मचारी के जीवन मे प्रामाणिकता फैलेगी तभी वफादारी मानी जायेगी। किमानवर्ग मे भी आज म देखते हैं कि- शहरी जीवन का अनुकरण हो रहा है । यह कसे ? सुनिये--पहले किमान का जीवन सीधा-सादा, मरल-माया, छल-प्रपच से रहित होता था । आज उाके अन्तर्जीवन मे नी चाप नमी, निष्ठुरता कठोरता एव मायावी प्रवत्तियाँ चालू हैं। मुझे एक वात
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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