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१०० , मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्य
___ मुझे श्रद्धेय मुनि श्री से अनेक बार मिलन, न केवल मिलन अपितु उन्हे निकट से देखने का परखने का अवसर मिला है, इससे मैं यह दृढता के साथ कह सकता हूँ कि महाराज श्री छल प्रपचो व द्वन्द्वो से एकदम परे साक्षात् सरलता की भव्य मूर्ति हैं । आगम की मापा मे नि सन्देह उनका जीवन चन्द्र से अधिक निर्मल, सूर्य से अधिक तेजस्वो एव सागर से अधिक गभीर है।।
श्रमण सघ मे ऐसे त्यागी, वैरागी तपस्वी मनस्वी विद्वान सतो का होना समाज के लिए ही नही राष्ट्र के लिए भी सीभाग्य की बात है अत मे इसी शुभ एव मगल कामना के साथ
सतत साधना पथ पर बढ़ता, रहे 'कमल' जीवन स्यन्दन । परम प्रतापी प्रताप मुनिवर, स्वीकृत करिये अभिनन्दन ।।
श्रद्धय श्री प्रतापमल जी म. सा० : एक अनुभूति
-भगवती मनि "निर्मल" निश्छल नयन, निर्मल चेहरा हर्प प्रफुल्लता मे ओतप्रोत विकसित नयन श्याम उपनेत्र से आच्छादित, व्यक्तित्व को देखकर कौन आल्हादित नहीं होगा, वालक वृद्ध कोई भी हो, उसे उसी मुद्रा मे सभापण करने की कला मे प्रवीण पडितजी म० के उपनाम से सम्बोधित प० रत्न श्रद्धेय प्रतापमल जी म० सा० को कौन नही जानता?
मेरा आपमे सर्व प्रथम परिचय वम्बई थाना मे हुआ था उसी समय का अमिट प्रभाव आजतक मेरे ऊपर है । हाँ मव्य मे कुछ व्यवधान आया, वाधाएं आयी पर थे वे भी क्षणभगुर नाशमान देह के समान अल्पवयी। वडो मे जो छोटो को मार्गदर्शन देने की या अभिमानपूर्वक वार्तालाप करने की भावना देखी जाती है वो भावना आप मे नाम मात्र भी दृष्टिगोचर नही होती। प्रेम पूर्वक निश्चल नेत्रो से दृप्टिपात करते हुये हर एक को मार्गदर्शन कराते हुये आपको कभी भी देखे जाते हैं।
वडे-बडे दिग्गजो मे भाषा का जो व्यामोह देखा जाता है, भापा सस्कृतमय क्लिष्ट शब्दावली मे उच्चारित विद्वानो के सन्मुख उन्हे विद्वानो की श्रेणी मे रखे किन्तु जन साधारण के पल्ले कुछ नही पडने वाला वह औरो के कहे हुए वाक्यो की चू कि विद्वानो है, प्रतिध्वनि भले ही करले किन्तु अन्तर मन से विद्वान के भापण उसके समझ से परे की वस्तु है ।
विपय उसके मस्तिक मे कुछ भी नही आता, वह आखें वन्द किये खानापूर्ति के लिए बैठा है किन्तु जिन महापुरुपो ने जनता जनार्दन की भापा मे व्याख्यान उपदेश दिये हैं या अपना मन्तव्य दिया है वे ही उनके गले के हार बन गये हैं । प्रत्येक व्यक्ति उन्ही की ओर आकर्षित होता है वह उन्हीं को अपना गले का हार वना बैठा है। श्रद्धा का केन्द्र विन्दु भी उन्ही के इर्द गिर्द घूमता चक्कर लगाता हुआ दिखता है। प्रसिद्ध वक्ता जैन दिवाकर चौथमल जी म० सा० के व्याख्यान मे जन साधारण की भीड इसी कारण मे थी वही नजारा श्रद्धेय प० रत्न श्री प्रतापमल जी म. सा. के व्याख्यानो मे भी देखा जाना है। विशेषता है कि वे अपने उपदेश व्याख्यान विद्वद् भापा मे न देकर जन साधारण की भापा में देते हैं, कैसा भी गूढ विषय हो, उसे साधारण भापा में व्यक्त कर श्रोताओ के हृदयगम करा देने की कला मे आप पटु है अत आपके व्याख्यानो मे प्राय देखा जाता है कि प्रत्येक श्रेणी के व्यक्ति