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________________ द्वितीय खण्ड ' संस्मरण | ६३ धर्मपत्नी अपघात करने पर तुली हुई है । पारस्परिक हम दोनो मे कहा सुनी हुई और मैंने आवेश में आकर उसके मुह पर दो-चार चपातें जमा दिये । इस कारण अब वह तेल छिडक कर खुद की हत्या करना चाहती है। मकान के सर्व दरवाजे वद कर दिये हैं। अब मैं गरकार की शरण मे जाऊँ, तो हम दोनो की इज्जत और धन की पूरी हानि होगी। इस कारण मैंने आपकी शरण लेना ठीक समझा है । मुझे पक्का विश्वास है कि-आपकी बात मानकर वह समझ जायगी । आग मे सरसन्ज बाग लगाने में आपकी वाणी सशक्त है। दुर्घटना आप के चारचरण कमलो से टल जायगी। अतएव आप देर न करे । वरन् अकाज होने की निश्चय ही सभावना है। साथी मुनि के साथ गुरुदेव वहाँ पहुँचे । वास्तव मे वहां दारुण दृश्य निर्मित था। चारो ओर से मकान के दरवाजे वद थे । चारो ओर मिट्टी के तैल की बुदबू उड रही थी। गुरुदेव- "वहन | जरा वाहर आओ । कुछ सेवा-शुश्रू पा का काम है।" "आप कौन हैं ?" अन्दर से आवाज आई। मैं प्रताप मुनि हूँ । कपडा सीने के लिए मुझे सुई की आवश्यकता है । वाहर आकर दे ओ। गुरु महाराज | मैं किसी भी हालत मे वाहर नही आ सकती हूँ। आप पडोसी के यहाँ से ले जाइए।" नही, सुई तुम्हे ही देना होगा।" आखिर मे वह सुई लेकर बाहर आई । सारे कपडे तैल से आप्लावित थे। शारीरिक दशा दुर्दशा मे वदल चुकी थी। अव गुरुदेव बोले-वहन । यह क्या? और किसलिए? क्या तुम्हे मरना है ? अपघात करके ही क्यो ? अपघात करके कोई भी सुखी नहीं, अपितु नारकीय वेदना-व्यथा अवश्य प्राप्त करता है। तत्पश्चात उसके लिए भवभवान्तर मे भटकने के सिवाय और कोई मार्ग ही नही। तुम समझदार होकर क्रोध के वश भय कर अधर्म करने पर कैसे उतर गई ? माना कि - दाम्पत्य जीवन तुम्हारा अशात एव दुखी है। किंतु इसका मतलब यह तो नही कि इस अनुपम देह की दुर्दशा कर मरे । मरना ही है तो धर्म-करणी करके मरो। असरकारी वाणी के प्रभाव से दोनो की अक्ल, ठिकाने आई । उसी वक्त दोनो के आपस मे क्षमापना करवाया गया, गृहिणी को अपघात नहीं करने का त्याग एव गृहस्वामी को हाथ नही उठाने का परित्याग करवाया। पति-पत्नी के वीच पुन शान्त भाव की प्रतिष्ठा हुई। आग में बाग लगाने वाले साधक के चरणों मे अश्रुपूरित नेत्रो से वे दोनो झुक पड़े थे। ___ अद्यावधि गुरुदेव की शिक्षाओ पर अमल करते हुए दोनो का जीवन गही सलामत फलफूल रहा है । सई लेकर गुरुदेव स्थानक मे पहुँचे, भारी दुर्घटना वच गई। २० विरोधी आप की तारीफ क्यो करते हैं ? शिप्य मडली के साथ गुरुदेव श्री जी का नागदा जक्शन पर पदार्पण हुआ था । मध्याह्न की शान्त वेला मे एक मुमुक्षु कार्यकर्ता चरणो मे उपस्थित होकर वोला-महाराज | ऐसा आप के पास कौन सा
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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