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________________ ८८ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ ही नहीं, अपितु प्राणी मात्र का बहुत बडा हित किया है । फलस्वरूप राम और कृष्ण को भूल जाने का मतलव है-आप अपने मात पिता को भूल रहे हैं। बोलो बच्चो | अपने भगवान राम और कृष्ण-महावीर को भूल जाओगे ? नही | नही । जन्म से ही हमे याद है हमारे भगवान राम और कृष्ण हैं । अच्छा वोलो-भगवान राम की-"जय जय ।" भगवान कृष्ण की-"जय जय" भगवान महावीर की-"जय जय" इस प्रकार उन्हे वास्तविक वस्तु स्थिति का ज्ञान करा कर गुरु देव ने आगे की राह ली। १४. समय-सूचकता स० २००६ का वर्पावास गुरुदेव पालनपुर मे वीता रहे थे। उन दिनो हरिजन समाज के विकास की चर्चा चारो ओर गूंज रही थी। सरकार एव सुधारवादी जन की ओर से उस समाज को काफी सुविधा प्रदान की जा रही थी। एक दिन विकासशील जैन युवक मण्डल गुरुदेव के पावन चरणो मे आकर वोला--महाराज ! हम हरिजन समाजोत्थान के इच्छुक हैं । वे भी मानव और हम भी मानव हैं । जैन धम पक्का मानवता का पुजारी रहा है। भगवान महावीर ने जातिवाद को नही, कर्मवाद को महत्त्व दिया है। फिर क्या कारण कि-वे आपके अमृत मय उपदेश से वचित रहे ? इस कारण हमारा युवक मण्डल उन हरिजन नरनारियो को आपके उपदेश एव दर्शन से लाभान्वित करना चाहता है । यद्यपि बुजुर्ग जन मदैव विरोधी रहे हैं तथापि आप को मजबूत रहना होगा और हरिजन यहाँ आवे तो आपको तिरस्कार नही करना होगा। ___ गुरुदेव तो प्रारभ से ही ममन्वय प्रेमी एव सुधारवादी रहे हैं। “वसुधैव कुटुम्बकम्" भावना के हामी ही नही, अनुगामी भी रहै हैं । "युवक मण्डल हरिजनो को स्थानक मे ला रहे हैं ।" वुजुर्ग कार्य-कर्ताओ को जब यह सूचना मिली कि वे शीघ्रातिशीघ्र गुरुदेव की सेवा मे आकर निवेदन किया--महाराज नगर मे युवक मण्डल विकास के बहाने सस्कृति-सभ्यता का सरासर विनाश कर रहे हैं । जवरन उन्हे मन्दिर एव स्थानको मे लाते हैं आप सावधान रहें । नवयुवको के चक्कर मे आवें नही । वरन् समाज मे फूट फैल जायगी और आप को भी अशाति का अनुभव करना होगा। दुहरा वातावरण गुरुदेव के सम्मुख था । उत्तर मे महाराज भी बोले-आप बुरा नही मानो यदि वे स्थानक मे आकर उपदेश सुनते हैं तो आप को क्या आपत्ति है ? फिर भी समस्या उलझने नही देऊंगा । इतने में तो हारजनो का एक काफिला आता नजर आया । सभी बुजर्ग जन लाल-पीले हो चले थे। ____ कही विपाक्त वातावरण न बन जाय । इस कारण शीघ्र महाराज श्री स्थानक के बाहर आकर बोले-मेरे नवयुवको । मैं आपके विचारो का आदर करता हूँ। आज का यह कार्य-क्रम अपने .
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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