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विद्यमान हैं। जिस प्रकार औषधियों मे रोग-नाशक शक्ति होती है, परन्तु वह शक्ति विभिन्न उपायों विधियो और अनुपानों से विविध कार्य करने लगती है, इसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र की विशिष्ट अक्षर-योजना से शारीरिक विद्युत-धारा जो महापुरुषो के मस्तक के आस-पास आभा-मण्डल के रूप में रहती है, शरीर के विभिन्न अंगों से प्रवाहित होने लगती है, फिर उसके द्वारा स्वेच्छा से अनेक कार्य कराए जा सकते हैं । यही कारण है कि विशिष्ट माधना-सम्पन्न महासाधक मन्त्रसाधना द्वारा जो शक्ति प्राप्त करते हैं. जिसे सिद्धि या लब्धि कहा जाता है, उसके बार-बार प्रयोग का निषेध किया गया है, क्योकि सांसारिक कार्यो मे उसके अपव्यय हो जाने से आत्मोद्धार के प्रयत्नों में शिथिलता आ जाती है ।
___ मन्त्र-योग में 'ध्वनि' ही प्रमुख है, अतः मन्त्रो में अर्थ पर ध्यान न देकर ध्वनि-योजना की विशेष विधि ही अपनाई जाती है। यही कारण है कि मन्त्र-निष्ठ बहुत सी ध्वनियों का कोई अर्थ नही होता। महामन्त्र ॐ का कोई अर्थ नही, मन्त्र शास्त्रियों के बीज मन्त्रों (ह्रां, ह्री, हू, हौ ह्रः, असि प्रा उ सा आदि) का कोई अर्थ नही होता, वे केवल ध्वनि-प्रकम्पन के लिए प्रयुक्त होते हैं। जब भगवान महावीर जैसे उत्तम पुरुष 'मन्त्र-शक्ति' पर अधिकार कर लेते हैं तो उनके शरीर ध्वन्यात्मक विद्युत् के केन्द्र बन जाते है ऐसी प्रभावशील विद्युत के जिसके प्रभाव से कोई भी प्रभावित चार]