________________ निश्चय परम लक्ष्य की ओर--संलग्न है, जिनका मन विषयकषायों से, राग-द्वेष-मोह आदि विकारों से विमुख हो गया है, उन महामानवों को सुगुरु कहा जाता है। जो जर जोरू और जमीन के पचड़े में फंसे हुए हैं, कनक कामिनी के गुलाम बने हुए हैं, डेरे-डंडे के मालिक बने हुए है, जो सदैव यानवाहन का उपयोग करने वाले है, जो संयम और तप से कोसों दूर हैं, जो गृहस्थों की तरह महारंभी और महापरिग्रही हैं तथा राजसी वैभव से संपन्न हैं, ऐसे साधु वेषधारी गुरु ही नहीं हो सकते तो वे सुगुरु कैसे बन सकते हैं ? अतः सुदेव और सुगुरु, इन दो पदो मे परमेष्ठी के पांच पदो का समावेश हो सकता है। उपर्युक्त पूर्ण विश्लेषण से हम इस निश्चय पर पहुंचते हैं कि नमस्कार मन्त्र जीवन के विस्तृत विकास-पथ पर बढ़ते हुए साधकों को पांचों अवस्थानों में नमस्कार करता है, विकास की प्रथम सीढ़ी पर साधु रूप में, द्वितीय सीढ़ी पर उपाध्याय रूप में, तीसरी सीढ़ी पर प्राचार्य रूप मे, चौथी सीढ़ी पर सिद्ध रूप में और पांचवी सीढ़ी पर अरिहन्त रूप में दिव्यात्माओ के चरणों में नमस्कार करके नमस्कार करनेवाला जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है, उसके जीवन में मंगल की सृष्टि होती है और उस मंगलमयी अवस्था में नमस्कार करनेवाला मंगल रूप अध्यात्म-पथ पर अग्रसर होता हुमा एक दिन स्वयं मगलरूप बन जाता है / यही नमस्कार मन्त्र की महत्ता एवं उपयोगिता है। . , परिक्षा 031455 [षष्ठ प्रकाश