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लोए सव्वमाहूण लिख कर, फिर ईशान कोण की पंखुड़ी मे लेकर प्रत्येक कोण मे फलश्रुति की गाथा के चारो पद लिखे जाते हैं। इस प्रकार परमेष्ठियो के वर्ण के अनुसार इस यन्त्र मे रगो की भी योजना की जाती है ।
पहले यह पदस्थ ध्यान के रूप मे बाह्य प्रक्रिया है, फिर धीरे-धीरे हदय-प्रदेश मे अवस्थित अष्टदल कमल नामक चक्र मे इस प्रकार का पदस्थ ध्यान करते हुए साधना की उच्चतम दशा को प्राप्त किया जाता है ।
प्रवेताम्बर मूर्ति पूजक के सम्प्रदाय मे वासक्षेप के रूप मे नवकार मन्त्र के साथ तन्त्रात्मक प्रयोग भी होता है और वासक्षेप के अनेक सुपरिणाम प्रत्यक्ष देखे गए है। वासक्षेप मे कैंसर कस्तूरी प्रादि द्रव्य अग्नितत्त्व प्रधान ही होते है ।
इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि नवकार मन्त्र एक ऐसी ध्वन्यात्मक विद्युत-धारा है जो लौकिक एव अलौकिक सभी कार्यो मे सहायक हो सकती है, अत इसका निरन्तर जप सब प्रकार से सिद्धिदाता है ।
१. अष्टपत्रे सिताम्भोजे कर्णिकायां कृतस्थितम् ।
आद्यं सप्ताक्षर मन्त्रं, पवित्र चिन्तयेत् तथा ।। सिद्धादिक-चतुष्क च दिपत्रेषु यथा-क्रमम् । चूला-पादचतुष्कञ्च, विदिपत्रेषु चिन्तयेत् ।।
योगशास्त्र, प्रकाश पाठ सोलह ]