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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार ११६ ११४ ३८३ ३८४ ११ or mr orroro xom ४३१ १७६ अविवाग असई असण असप्पलाव असब्भाव असब्भावट्ठवणा असरीर असाय अस्सिणी असुह असुइ असुहावह असेस असोय असंख असंखज्जय असंजद प्रह अहवा अहिय अहिव अहियरण *अहिभूसिय अहिमुह अहियार अहिलास अहिसित्त अहिसेय अहोलोय अहोविहाय अविपाक फल-रहित असती कुलटा अशन भोजन असत्प्रलाप मिथ्या बकबाद असद्भाव यथार्थताका अभाव असद्भावस्थापना अतदाकार स्थापना अशरीर शरीर-रहित असात साता-रहित अश्विनी नक्षत्र विशेष अशुभ, असुख बुरा, दुःख अशुचि अपवित्र अशुभावह दुःखजनक अशेष समस्त अशोक वृक्षविशेष असंख्य सख्या-रहित असंख्येय गिननेके अयोग्य असंयत अविरत,सयम-रहित अथ, अघ, अहन् , अधः अब, पाप, दिन, नीचे अथवा विकल्प श्रहित, अधिक,अधीत, अहितकर, शत्रु, अधीर, पठित. विशेष अधिप स्वामी, मुखिया श्रधिकरण आधार अभिभूषित, *अभिभूष्य आभूषण-युक्त, आभूषण पहन कर अभिमुख, समुख अधिकार आधिपत्य अभिलाष इच्छा अभिषित्त अभिषेक किया गया अभिषेक विशेष स्नान अधोलोक पाताल-भुवन अधोविभाग नीचेका भाग १७६ ३४६ २७७ १८६ १२६ ४६ ३६५ २७४ ३१२ ११२ ४६१ १७१ ४६० आ बाकीर्ण श्राचार्य श्रायु श्राकुल व्याप्त गुरु, विद्वान् ७८ ५४५ १६६ श्रायु आइराण आइरिय प्राउ पाउल. आऊ ग्राऊरिऊण आगम आगर आगरसृद्धि आगास १७३ ५१७ श्रापूर्य आगम आकर आकरशुद्धि श्राकाश व्यग्र जीवन-काल पूरा करके शास्त्र खानि खानिमें प्रतिमाकी शुद्धि गगन
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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