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________________ प्राकृत-शब्द-संग्रह अमिय अमित अमुग 'अमुणंत अमूढदिट्ठी अमेझ ४८ प्रय २१६ । अमृत अमुक अजानन् अमूदृष्टि अमेध्य (अयस् , अायस (अज अगुरु श्रयश अजाणमाण अकार अरति अरण्य अरविंद अहेत्, अरुह अयरु अयस 'अयाण्माण अयार अरइ अरण्ण अरविंद বহু ४२८ murde Durtured परिमारण-रहित ४३६ सुधा, चन्द्रमा (दे०) वह, कोई ३८४ नही गिन कर, नही जान कर सम्यग्दृष्टि, तत्त्वदर्शी अशुचि वस्तु, विष्टा ८५ लोहा, लोहेसे बना हुआ, आग-पर्वत बकरा सुगन्धित काष्ठ-विशेष अपयश नही जानता हुआ अ-अक्षर ग्लानि, बेचैनी बन, जगल कमल पूजाके योग्य, परिग्रह-रहित, जन्म-रहित जन्म नही लेनेवाला ३८२ रूप-रहित, अमूर्तिक नही पाता हुआ ११५ अप्राप्ति भ्रमर असत्य वचन, झूठ, निप्पल, निरर्थक, कपाल २१० लोभ-रहित अवलोकन, ५३५ अवस्थान, अवगाहन पाप, निन्दनीय पार उतरा हुआ ५४२ तिरस्कार १२५ दूसरा, पाश्चात्य, हीन, तुच्छ कल्पातीत विमान सायकालिक कसूर, अपराध (दे०) कटी, कमर पराधीन २७६ ४२८ २२४ ७ अरूवि अलहमाण अलाह अलि अलिय अलुद्धय अवगहण अवगाहन अवज्ज अवतिरण अवमाण अवर अवराजिय अवरारिहय अवराह अवस अवसाण अवसारिय अवसेस अवाय अब्वावाह अविच्छिराण अविभागी अविरह अविरयसम्माइट्ठी अरूपि अलभमान अलाभ अलि अलीक अलुब्धक अवगहन अवगाहन अवद्य अवतीर्ण अपमान अपर, अवर अपराजित अपराह्निक अपराध अवश अवसान अपसारित अवशेष अवाय अव्याबाध अविच्छिन्न अविभागी अविरति अविरतसम्यग्दृष्टि ४६२ २५४ १४६ अन्त २८१ ४३७ २७१ दूर किया हुआ, खीचा हुआ अवशिष्ट, बाकी ज्ञान विशेष बाधा-रहित विच्छेद-रहित विभाग-रहित असयम चतुर्थगुणस्थानवर्ती ३५४ ३६ २२२.
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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