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' वियाहपण्णत्ति
वियाहपण्णत्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति) व्याख्याप्रज्ञप्ति को भगवतीसूत्र भी कहा जाता है।' प्रज्ञप्ति का अर्थ है प्ररूपण | जीवादि पदार्थों की व्याख्याओं का प्ररूपण होने से इसे व्याख्याप्रज्ञप्ति कहा जाता है। ये व्याख्यायें प्रश्नोत्तर रूप में प्रस्तुत की गई हैं। गौतम गणधर श्रमण भगवान् महावीर से जैनसिद्धांतविषयक प्रश्न पूछते हैं और महावीर उनका उत्तर देते हैं। इस सूत्र में कुछ इतिहास-संवाद भी हैं जिनमें अन्य तीथिंकों के साथ महावीर का वाद-विवाद उद्धत है। इस सूत्र के पढ़ने से महावीर की जीवन-संबंधी बहुत-सी बातों का पता चलता है। महावीर को यहाँ वेसालिय (वैशाली के रहनेवाले ) और उनके श्रावकों को बेसालियसावय (वैशालीय अर्थात् महावीर के श्रावक ) कहा गया है। अनेक स्थलों पर पार्श्वनाथ के शिष्यों के चातुर्याम धम का त्याग कर महावीर के पंच महाव्रतों को अंगीकार करने का उल्लेख है जिससे महावीर के पूर्व भी निर्ग्रन्थ प्रवचन का अस्तित्व सिद्ध होता है। गोशालक के कथानक से महावीर और गोशालक के घनिष्ठ संबंध पर प्रकाश पड़ता है। इसके अतिरिक्त आर्य स्कंद, कात्यायन, आनंद, माकंदीपुत्र, वजी विदेहपुत्र (कूणिक) नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी, उदयन, मृगावती, जयन्ती आदि महावीर के अनुयायियों के संबंध में बहुत-सी बातों की जानकारी मिलती है। अंग, वंग, मलय, मालवय, अच्छ, वच्छ, कोच्छ, पाढ़, लाढ़, वजि, मोलि, कासी, कोसल, अवाह और संभुत्तर (सुझोत्तर) इन सोलह जनपदों का उल्लेख यहाँ मिलता है। इसके सिवाय अन्य अनेक ऐतिहासिक, धार्मिक एवं पौराणिक
१. अभयदेव की टीकासहित आगमोदय समिति द्वारा सन् १९२१ में प्रकाशित; जिनागमप्रचार सभा अहमदाबाद की ओर से वि० सं० १९७९-१९८८ में पं० बेचरदास और पं० भगवानदास के गुजरातो अनुवादसहित चार भागों में प्रकाशित ।