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अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७०५ वध्यस्थान को ले जाते समय वजाये जाने वाले पटह के समान नूतन मेघों की गर्जना का शब्द सुना है।
अज्ज वि ताव एक्कं मा मं वारेहि पिअसहि ! रुअन्तिम् । कल्लि उण तम्मि गए जइ ण मरिस्सं ण रोइस्सम् ।।
(स० के०५,३४५, गा० स०५,२) हे प्रियसखि ! आज केवल एक दिन के लिए रोती हुई मुझे मत रोको कल उसके चले जाने पर, यदि मैं जीवित रही तो फिर कभी न रोऊंगी।
अज वि सेअजलोल्लं पब्वाइ ण तीअ हलिअसोण्हाए। फग्गुच्छणचिक्खिल्लं जं तइ दिण्णं थणुच्छंगे ।
(स० के० ५, २२६) उस कृषक-वधू के स्तनों पर फाग खेलने ( फग्गुच्छण) के अवसर पर लगाया हुआ कादों स्वेदजल से गीला होने पर आज भी नहीं छूटता।
अजवि हरि चमका कहकहवि न मंदरेण दलिआई। चन्दकलाकंदलसच्छहाइं लच्छीइ अंगाई ॥
(काव्यानु०, पृ०९९, १५९) चन्द्रकला के अंकुर के समान लक्ष्मी का शरीर किसी भी कारण से मंदर पर्वत से दलित नहीं हुआ, यह देखकर विष्णु भगवान् आज भी आश्चर्यचकित
अज्ज वि बालो दामोअरो त्ति इअ जंपिए जसोआए। कण्हमुहपेसिअच्छं णिहुअं हसिकं बअबहूहि ॥
(गा०स०२,१२० स०के०४,२१९) अभी तो कृष्ण बालक ही है, इस प्रकार यशोदा के कहने पर कृष्ण के मुँह को टकटकी लगाकर देखती हुई ब्रजवनितायें छिप-छिपकर हँसने लगीं।
(पर्याय अलंकार) अज्ज सुरअंमि पिअसहि ! तस्स विलक्खत्तणं हरंतीए । अकअत्थाए कत्थो पिओ मए उणि मवऊढो॥
(शृङ्गार ४७, २२९) हे प्रिय सखि ! आज सुरत के समय उसकी लज्जा अपहरण करते हुए मुझ' अकृतार्थ द्वारा कृतार्थ किया हुआ प्रियतम पुनः पुनः मेरे द्वारा आलिंगन किया गया)
(नित्यानुकारी का उदाहरण । अजाए णवणहक्खअणिक्खणे गरुअजोव्वणुत्तंगम् । पडिमागमणिअणअणुप्पलच्चिों होइ थणवट्ठम् ॥
(स० के०५, २२१%, गा० स०२,५०) गुरु यौवन से उभरे अपने स्तनों पर बने हुए नूतन नखक्षतों को देखते समय नायिका के नेत्रों का (उसके स्तनों पर ) जो प्रतिबिम्ब पड़ा, उससे ऐसा प्रतीत हुआ कि मानों नील कमलों से वह पूजा कर रही है ।
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