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आचारांग
भी उन्हें रूखा-सूखा ही मिलता | वहाँ के कुत्ते उन्हें बहुत कष्ट देते ।' कोई एकाध व्यक्ति ही कुत्तों से उन्हें बचाता | छू-छू करके वे कुत्तों को काटने के लिये महावीर पर छोड़ते । फिर
उवसंकमंतमपडिन्नं गामन्तियम्मि अप्पत्तं । पडिनिक्खमित्तु लूसिंसु एयाओ परं पलेहित्ति ॥ हयपुवो तत्थ दंडेण अदुवा मुट्ठिणा अदु कुन्तफलेण । अदु लेलुणा कवालेण हन्ता हन्ता बहवे कंदिसु ॥ मंसाणि छिन्नपुव्वाणि उट्ठभिया एगया कायं । परीसहाई लुंचिंसु अदुवा पंसुणा उवकरिंसु ॥ उच्चालिय निहणिंसु अदुवा आसणाउ खलइंसु ।
वोसट्ठकाय पणयाऽसी दुक्खसहे भगवं अपडिन्ने ॥ -भोजन या स्थान के लिये आते हुए महावीर जब किसी ग्राम के पास पहुँचते तो ग्रामवासी गाँव से बाहर आकर उन्हें मारते और वहाँ से दूर चले जाने के लिये कहते | वे लोग डंडे, मुष्टि, भाले की नोंक, मिट्टी के ढेले अथवा कंकड़-पत्थर से मारते और बहुत शोर मचाते । कितनी ही बार वे उनके शरीर का मांस नोंच लेते, शरीर पर आक्रमण करते और अनेक प्रकार के कष्ट देते | वे उनके ऊपर धूल बरसाते, ऊपर उछालकर उन्हें नीचे पटक देते और आसन से गिरा देते । लेकिन शरीर की ममता छोड़कर सहिष्णु महावीर अपने लक्ष्य के प्रति अचल रहते।
द्वितीय श्रुतस्कंध के पिडैषणा अध्ययन में भिक्षु-भिक्षुणियों के आहार-संबंधी नियमों का विस्तृत वर्णन है। पितृभोजन, इन्द्र आदि महोत्सव अथवा संखडि (भोज) के अवसर पर
१. आजकल भी छोटा नागपुर डिवीज़न और उसके आसपास के प्रदेशों में कुत्तों का बहुत उपद्रव है।
२. संखडि के लिये देखिये बृहत्कल्पभाष्य ३, ३१४८, पृष्ठ ८८१८९१; जगदीशचन्द्र जैन, लाइफ इन ऐशियेण्ट इण्डिया ऐज डिपिक्टेड
४प्रा० सा०