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उपसंहार में से उदाहरण चुन-चुन कर उनके आधार से व्याकरण के नियम बने । व्याकरण के साथ-साथ छंद और कोष भी तैयार हुए | गाथा-छन्द प्राकृत का सर्वप्रिय छन्द माना गया है। इसमें और भी अनेक नये छंदों का विकास हुआ, तथा मात्रिक अथवा तालवृत्तों को लोक-काव्य से उठाकर काव्य में उनका समावेश किया गया ।
विद्वज्जनों में प्राकृत का प्रचार होने से ज्योतिष, सामुद्रिकशास्त्र, और संगीत आदि पर प्राकृत ग्रंथों की रचना हुई । रत्नपरीक्षा, द्रव्यपरीक्षा आदि विषयों पर विद्वानों ने लेखनी चलाई। प्राकृत का सबसे प्राचीन उपलब्ध शिलालेख हाथीगुंफा का शिलालेख है जो ईसवी सन के पूर्व लगभग प्रथम शताब्दी में उदयगिरि पहाड़ी में उत्कीर्ण किया गया था ।
इस प्रकार ईसवी सन के पूर्व ५ वीं शताब्दी से लगाकर ईसवी सन की १८ वीं शताब्दी तक प्राकृत भाषा का साहित्य बड़े वेग से आगे बढ़ता रहा । २३०० वर्षों के इस दीर्घकालीन इतिहास में उसे भिन्न-भिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ा। उसमें धर्मोपदेश उद्धृत किये गये, लौकिक आख्यानों की रचना हुई, काव्यों का सर्जन हुआ, नाटक लिखे गये तथा व्याकरण, छंद और कोशों का निर्माण हुआ । यदि प्राकृत संस्कृत की शैली आदि से प्रभावित हुई तो संस्कृत को भी उसने कम प्रभावित नहीं किया। दोनों में वही संबंध रहा जो दो बहनों में हुआ करता है। प्राकृत ने जब-जब संस्कृत की देखा-देखी साहित्यक रूप धारण करने का प्रयत्न किया तब-तब वह जन-समाज से दूर हो गई। बोलचाल की वैदिक प्राकृत को जब साहित्यिक रूप मिला तो वह संस्कृत बन गई। आगे चलकर यही प्राकृत पालि और अर्धमागधी के रूप में हमारे सामने उपस्थित हुई । जब उसका भी साहित्यिक रूप निर्माण होने लगा तो बोलचाल की प्राकृत भाषा अपभ्रंश कही जाने लगी। अपभ्रंश के पश्चात् देशी भाषाओं का उदय हुआ। तात्पर्य यह है कि प्राकृत ने जनसमुदाय का साथ नहीं छोड़ा।