________________
प्राकृत साहित्य का इतिहास
लग्गसुद्धि
इस ग्रन्थ के कर्ता याकिनीसूनु हरिभद्र हैं।' इसे लग्नकुंडलिका नाम से भी कहा गया है। यह ज्योतिषशास्त्र का ग्रन्थ है । इसमें १३३ गाथायें हैं जिनमें शुभ लग्न का कथन है ।
६७६
दिनसुद्ध
इसके कर्ता र शेखरसूरि हैं । इसमें १४४ गाथाओं में रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि की शुद्धि का वर्णन करते हुए तिथि, लग्न, प्रहर, दिशा और नक्षत्र की शुद्धि बताई है ।
जाइसहीर ( जोइससार - ज्योतिपसार )
इस ग्रन्थ के कर्ता का नाम अज्ञात है । ग्रन्थ के अन्त में लिखा है कि 'प्रथमप्रकीर्ण समाप्तं' इससे मालूम होता है कि यह ग्रन्थ अधूरा है | इसमें २=७ गाथायें हैं जिनमें शुभाशुभ तिथि, ग्रह की सबलता, शुभ घड़ियाँ, दिनशुद्धि, स्वरज्ञान, दिशाशूल' शुभाशुभयोग, व्रत आदि ग्रहण करने का मुहूर्त, औौरकर्म का मुहूर्त्त और फल आदि का वर्णन है ।
करलक्खण
यह सामुद्रिक शास्त्र का अज्ञातकर्तृक ग्रन्थ है ।" इसमें ६१
१. उपाध्याय क्षमाविजयगणी द्वारा संपादित, शाह मूलचन्द बुलाखीदास की ओर से सन् १९३८ में बम्बई से प्रकाशित ।
२. सम्पादक और प्रकाशक उपर्युक्त ।
३. पंडित भगवानदास जैन द्वारा हिन्दी में अनूदित, मैनेजर, नरसिंहप्रेस, हरिसन रोड कलकत्ता की ओर से सम्वत् १९२३ में प्रकाशित । मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने अपने जैन साहित्य नो इतिहास ( पृष्ठ ५८२ ) में बताया है कि हीरकलश ने वि० सं० १६२६ ( ईसवी सन् १५६४ ) में नागौर में जोइसहोर का उद्धार किया ।
४. प्रोफेसर प्रफुल्लकुमार मोदी द्वारा संपादित और भारतीय ज्ञानपीठ, काशी द्वारा सन् १९५४ में प्रकाशित ( द्वितीय संस्करण ) ।