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प्राकृत साहित्य का इतिहास
जयपाहुड निमित्तशास्त्र __इस ग्रन्थ के कर्ता का नाम अज्ञात है, इसे जिनभापित कहा गया है। यह ईसवी सन् की १०वीं शताब्दी के पूर्व की रचना है। निमित्तशास्त्र का यह ग्रन्थ अतीत, अनागत, वर्तमान, निमित्त आदि अनेक प्रकार के नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, विकल्प आदि अतिशय ज्ञान से पूर्ण है। इससे लाभालाभ का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इसमें ३७८ गाथायें हैं जिनमें संकट-विकटप्रकरण, उत्तराधरप्रकरण, अभिघात, जीवसमास, मनुष्यप्रकरण, पक्षिप्रकरण, चतुष्पद, धातुप्रकृति, धातुयोनि, मूलभेद, मुष्टिविभागप्रकरण, वर्ण-रस-गंध-स्पर्शप्रकरण, नष्टिकाचक्र, चिन्ताभेदप्रकरण, तथा लेखगंडिकाधिकार में संख्याप्रमाण, कालप्रकरण, लाभगंडिका नक्षत्रगंडिका, स्ववर्गसंयोगकरण, परवर्गसंयोगकरण, सिंहावलोकितकरण, गजविलुलित, गुणाकारप्रकरण, अस्खविभागप्रकरण आदि का विवेचन है।
निमित्तशास्त्र इसके कर्ता ऋपिपुत्र हैं। इसके सिवाय ग्रन्थकर्ता के संबंध में और कुछ पता नहीं लगता। इसमें १८७ गाथायें हैं जिनमें निमित्त के भेद, आकाश प्रकरण, चंद्रप्रकरण, उत्पातप्रकरण, वर्पा-उत्पात, देव उत्पातयोग, राज उत्पातयोग और इन्द्र-धनुप द्वारा शुभाशुभ ज्ञान, गंधर्वनगर का फल, विद्युल्लतायोग और मेघयोग का वर्णन है।
चूडामणिसार शास्त्र इसका दूसरा नाम ज्ञानदीपक है। यह भी जिनेन्द्र द्वारा
१. जयपाहुड और चूडामणिसार शास्त्र मुनि जिनविजयजी द्वारा संपादित होकर सिंधी जैन ग्रंथमाला में प्रकाशित हो रहे हैं। ये दोनों ग्रन्थ मुद्रितरूप में मुनि जी की कृपा से मुझे देखने को मिले हैं।
२. पंडित लालारामशास्त्री द्वारा हिन्दी में अनूदित, वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, शोलापुर की ओर से सन् १९४१ में प्रकाशित ।