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कर्पूरमंजरी
६२९ सट्टक उपलब्ध हैं। इनमें कपरमंजरी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है । कर्पूरमंजरी के रचयिता यायावरवंशीय राजशेखर (समय ईसवी सन् ६०० के लगभग ) हैं। कर्पूरमंजरी के अतिरिक्त उन्होंने बालरामायण, बालभारत, विद्धशालभंजिका और काव्यमीमांसा की भी रचना की है। राजशेखर नाटककार की अपेक्षा कवि अधिक थे। अपनी भाषा के ऊपर उन्हें पूर्ण अधिकार है। वसंत, चन्द्रोदय, चर्चरी नृत्य आदि के वर्णन कर्पूरमंजरी में बहुत सुंदर बन पड़े हैं। कर्पूरमंजरी को प्राकृत में लिखने का नाटककार ने कारण बताया है
परुसा सक्कअबंधा पाउअबंधो वि होई सुउमारो। पुरिसमहिलाणं जेत्तिअमिहन्तरं तेत्तिअमिमाणं ॥
-संस्कृत का गठन परुप और प्राकृत का गठन सुकुमार है। पुरुष और महिलाओं में जितना अन्तर होता है उतना ही अन्तर संस्कृत और प्राकृत काव्य में समझना चाहिये । ___ करर्पमंजरी में कुल मिलाकर १४४ गाथायें हैं जिनमें १७ प्रकार के छंद प्रयुक्त हुए हैं। इनमें शार्दूलविक्रीडित, वसन्ततिलका, श्लोक, स्रग्धरा आदि प्रधान हैं । गीति-सौन्दर्य जगह-जगह दिखाई देता है। इसमें शौरसेनी का प्रयोग हुआ है।' प्रेम का लक्षण देखिये
जस्सि विअप्पघडणाइ कलंकमुक्को अंतो मणम्मि सरलत्तणमेइ भावो । एक्केक्कअस्स पसरन्तरसप्पवाहो
सिंगारवढिअमणोहवदिण्णसारो ॥ (जवनिकांतर ३) १. स्टेन कोनो ने अपनी कर्पूरमजरी की प्रस्तावना में कर्पूरमंजरी के गद्यभाग में शौरसेनी और पद्यभाग में महाराष्ट्री प्राकृत पाये जाने का समर्थन किया था, और तदनुसार उन्होंने इस ग्रंथ का संपादन भी किया था, लेकिन डाक्टर मनमोहनघोप ने अपनी तर्कपूर्ण युक्तियों द्वारा इस मत को अमान्य किया है। देखिये मनमोहनघोप की कर्पूरमंजरी की भूमिका।